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Showing posts from June, 2017

जाति आरक्षण की आड़ में नासमझों की बढ़ती फौज

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भारत सरकार द्वारा 67 साल पहले निम्न जाति के साथ हो रहे कथित भेदभाव को लेकर जाति आरक्षण व्यवस्था लागु की गयी। उस समय सरकार का ध्यान सिर्फ इस ओर था की निम्न वर्ग के साथ उनकी जाति को लेकर शिक्षा और नोकरी के क्षेत्र में भेदभाव किया जा रहा है। लेकिन आज परिस्थिति कुछ ऐसी हो गयी है की आरक्षण की आड़ में अयोग्यो का शासन बढ़ता जा रहा है।यदि बात केवल शिक्षा के क्षेत्र की करें तो लाखो विद्यार्थी ऐसे होते है जो सामान्य वर्ग से उच्चतम अंक प्राप्त करते है लेकिन कम अंक वाले आरक्षण प्राप्त विद्यार्थी से पीछे रह जाते है।यदि सरकार जाति के हिसाब से आरक्षण न देकर आर्थिक स्थिति के हिसाब से आरक्षण दे तो भारत में पढ़े लिखे बेरोजगारो की मात्रा में निश्चित ही कमी आ जायेगी। जाति  आरक्षण केवल शिक्षा या नोकरी के क्षेत्र को ही प्रभावित नही कर रहा है अपितु जनता के रहन सहन और आर्थिक व्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है। सरकार ने ग्रामीण पंचायती व्यवस्था में भी आरक्षण को कुछ इस तरह लागु किया है कि अब केवल एक वर्ग के लोग ही चुनाव में उम्मीदवार होते है और ऐसा  करने पर अगले पाँच वर्षो में केवल उसी वर्ग का उद्धार होता है बाकि क

किसान आंदोलन

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इस समय मध्यप्रदेश किसान आंदोलन को लेकर चर्चा में है। 1 जून को महाराष्ट्र में शुरू हुए इस आंदोलन ने अगले दिन ही मध्यप्रदेश में तूल पकड़ लिया। मप्र के किसान विगत दो वर्ष से पड़ रहे सूखे के कारण कर्ज चुकाने में असमर्थ हो चुके है। कथित रूप से उन्हें न तो मुआवज़ा मिल रहा है न ही उनकी परेशानियां ख़त्म हो रही है। विगत दो वर्षो में मप्र के सैकड़ो किसानो ने आत्महत्या कर अपनी जान दे दी। कारण यही है बढ़ता हुआ कर्जा, सूदखोरों का दबाब, बर्बाद हो चुकी फसल और मूकदर्शक सरकार। जब एक किसान मरता है तो उसके परिवार की दशा पूछने कोई नही जाता। उन लोगो से जाकर यह कोई नही पूछता की अब आपकी गुजर बसर कैसे होगी। खासकर वो परिवार जिसका मुखिया पेड़ से लटक गया और अपने पीछे बच्चों और असहाय पत्नी को छोड़ गया। ऐसे सैकड़ो परिवार इस दशा में जैसे तैसे अपनी ज़िन्दगी गुजार रहे है। लेकिन सरकार दिन प्रतिदिन नयी नयी योजनाये चला रही है अंधाधुंध पैसा बर्बाद कर रही है लेकिन किसानो को मुआवज़ा फिर भी नही मिल रहा। यदि सरकार इतने करोडो का बजट लेकर आती है तो इसका मतलब यह होना चाहिए की अब कोई भी परिवार भूखा नही रहेगा, कोई भी पढ़ा लिखा युवा बेरोज़गार

समझोता

बालकनी में सुबह की हल्की हल्की धूप आ रही थी। अनुराधा जी कुर्सी पर बैठी चाय पी रही थी और उनके पति साथ बैठकर चाय के साथ अख़बार पढ़ रहे थे। उनका बेटा और बहु दोनों अपने अपने टिफिन ले कर ऑफिस जा चुके थे और पोता राहुल भी स्कूल चला गया था।अनुराधा जी चाय खत्म करके उठी और रसोई में जाकर दोनों का खाना बनाने में जुट गयी। यह उनका रोज़ का काम था उन्हें अपना और पति का खाना स्वयं ही बनाना पड़ता था। अपनी उम्र के हिसाब से अनुराधा जी को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। दोनों का खाना बनाना और राहुल के स्कूल से आने पर उसकी देखभाल करना। कभी कभी बेटा और बहु ऑफिस से लेट आते तो शाम का खाना भी उन्हें भी बनाना पड़ता था। कई बार बहु बहाने से पति और बेटे के साथ पिक्चर देखने या होटल में खाना खाने चली जाती। कभी सास या ससुरजी से बा हर खाने पर जाने का आग्रह नही किया। यदि बेटा उन्हें साथ ले जाना भी चाहे तो भी पत्नी के डर से कह नही पाता था। अनुराधा जी इस सब का विरोध नही कर पति थी क्योंकि उन्होंने अपनी ज़िन्दगी डर डर के ही बितायी थी। शादी के बाद जब वो गांव वाले घर में पहली बार आई थी तो सोचा करती थी की सास से में नही डरूँगी । मैं क्यों

इच्छा

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अनु अपने कमरे में बैठी घुटनो पर सर रखकर रोये जा रही थी।लेकिन वहाँ कोई नही था जो आकर उसके आँसू पोंछे या उसे दुलार कर चुप करा दे।क्योंकि यह उसका बचपन नही था जो उसकी माँ उसे गोद में लेकर चुप करा देती या उसके बाबा उसे कंधे पर बिठाकर घुमाने ले जाते। यह तो एक ऐसा पड़ाव था जहाँ अनु अठारह साल की हो गयी थी और कल ही उसे देखने वाले आये थे उसके बाबा ने उसका रिश्ता पक्का कर दिया था।अब कुछ ही दिनों में अनु अपने घर से परायी हो जायेगी। थोड़ी देर यूं ही सुबकती रही फिर जाने क्या सोच कर रसोई की तरफ गयी जहाँ उसकी माँ खाना पकाते हुए फोन पर सभी रिश्तेदारो को यह खुशखबरी दे रही थी की अनु की शादी पक्की हो गयी है। माँ के फुरसत होने पर अनु ने हिम्मत जुटाकर कहा- माँ मेरी शादी की इतनी जल्दी क्यों पड़ी है अभी तो मैंने 12वी ही पास की है।क्या मैं कॉलेज नही जाउंगी ?? मेरा सपना कैसे पूरा होगा? मैं पीएससी की परीक्षा नही दूंगी क्या?? बाबा ने मुझे बचपन से यही सपना दिखाया था न की मै बड़ी होकर अधिकारी बनूंगी। तो फिर बाबा मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे है?? अनु एक साँस में सब कहती चली गयी और जब चुप हुई तो उसकी माँ बोली - तुझे घर की

आखिर क्यों बिकता है ईमान

आज भारत एक ऐसा देश बन गया है जहाँ हर वैधानिक कार्य को अवैधानिक तरीके से किया जाना आम बात हो गयी है।सरकार से लेकर गैर सरकारी लोग भी रिश्वत और कपट से ओतप्रोत है।अब न तो योग्यता की ज़रूरत बाकि है न ईमानदारी की।सबको बहुत सारे पैसे कामना है चाहे उसके लिए अपना ईमान ही क्यों न बेचना पड़े।भारत में लाखो छात्र प्रतिवर्ष इस भ्रष्टाचार के दलदल में कूद कर अपनी योग्यता से अधिक पा जाते है और कई होनहार बच्चे भ्रष्टाचार के आगे हार जाते है। बात करें यदि काले धन की तो यह भ्रष्टाचार का मुख्य अंग है। पहले ऐसा माना जाता था की काला धन विदेशो में है जो भारतीय राजनेताओ द्वारा अपनी अंधाधुंध आय से बचा कर स्विश बैंक जैसी विदेशी संस्थाओ में जमा किया गया है। लेकिन पिछले वर्ष 2016 में यह पता चला की काला धन तो भारत की गरीब जनता के पास है वह जनता जो अपने बच्चों की शादी और पढाई लिखाई के लिए काला धन जमा कर रही है। देखते ही देखते जनता की यह जमा पूंजी कागज के टुकड़ो में बदल गयी। नोट बंदी का असर तो हुआ लेकिन इस कदम से भारत की अर्थव्यवस्था 4 महीने तक तहस नहस रही। अब भ्रष्टाचार ख़त्म हुआ या नही यह तो आखो देखी बात है।लेकिन एक उत्