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Showing posts from July, 2017

बदलती परिस्तिथियाँ और ग्रामीण हालात

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गांधी जी ने गांव को भारत की आत्मा कहा है। इन गाँवो से ही भारतीय संस्कृति की पहचान है। गांव का रहन सहन और वातावरण ही असल में भारत है। गांव का पहनावा और गाये जाने वाले लोकगीत भारतीय संस्कृति की कहानी कहते है। लेकिन जैसे जैसे समय बदला वैसे वैसे सभ्यता भी बदलती गयी। अब गांव केवल पिछड़ा हुआ क्षेत्र बनकर रह गए है और नगर महानगर में बदलने लगे है। जहाँ शहरों में हज़ारो स्कूल कॉलेज है वही गांव का भविष्य एक सरकारी स्कूल पर टिका हुआ है और कई जगह तो सरकारी स्कूल भी नही है। बच्चे मिलो दूर जाते है चाहे बारिश हो या कोहरा हो, सड़क हो या कीचड हो हर परिस्तिथि में बच्चों को स्कूल पहुचने में परेशानी होती है। जहाँ शहरों में नए नए हाइवे और नेशनल हाइवे बनाये जा रहे है वही गांव में अभी भी सड़के कच्ची है और जहा पक्की है वे भी मक्कारी से उखड़ी हुई और गड्ढो से भरी हुई है। विकास कार्य उस वक्त तेज़ होते है जब चुनाव समीप होते है  बाकि समय में विकास की गति धीमी बनी रहती है अब तो ग्रामीण पंचायती राज व्यवस्था में भी आरक्षण लागू कर दिया गया है की महिला एसटी या पुरुष एससी उम्मीदवार होने बाकि वर्ग के व्यक्ति चुनाव नही लड़ सकेंगे

बेरोजगार है हम....

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हम भारत के नौजवान है।हमसे ही बनता है भारत का युवा समुदाय। हमारे पास इंजीनियर कम्प्यूटर वाणिज्य मैनेजमेंट आर्ट्स आदि सभी डिग्रीया है। लेकिन हमारी ये योग्यता की पोथी फाइलो में बंद पड़ी है। ये बड़ी बड़ी डिग्रीयां लेकर भी हम आज प्राइवेट स्कूलो में ब्लैकबोर्ड पर चॉक घिसने पर मजबूर है जहाँ हमारी मेहनत के बदले दो चार हज़ार रूपये पकड़ा दिए जाते है। क्या आज की दुनिया में चार हज़ार रूपये वेतन पाने वाला शिक्षक अपने परिवार की मूलभूत आवश्यकताओ को पूरा कर सकता है?और अब मप्र में लंबे समय से युवाओं को नौकरी दिलाने में असफल साबित हो रहे रोजगार कार्यालयों का भविष्य तय हो चुका है। 51 जिला रोजगार कार्यालयों में से 15 को पीपीपी मॉडल पर प्लेसमेंट सेंटर के रूप में चलाया जाएगा, जबकि 36 बंद किए जाएंगे। पब्लिक, प्राइवेट, पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत निजी कंपनी चुनी जाएगी जो अन्य जिलों का काम भी संभालेगी और एक-एक कर बाकी जिलों के कार्यालय बंद कर दिए जाएंगे।यह आदेश 7 मार्च 2017 को प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान ने दिया था, जिस पर अब अमल करने की तैयारी की जा रही है। प्रदेश में लाखों युवा ऐसे हैं, जिन्हें पंजीकरण के बाद

क्या gst को सकारात्मक ले सकते है??

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1 जुलाई 2017 को भारत सरकार की ओर से gst ( goods and service tax) लागू किया गया। gst के आते ही देश भर में भिन्न भिन्न आलोचनाएं शुरू हो गयी। यहाँ तक की वेे लोग भी इस आलोचना में शामिल हो गए जिन्हें gst के मायने ही नही पता।लोगो की अवधारणा सरकार के प्रति कुछ ऐसी बन गयी है की सरकार कभी जनता का भला नही कर सकती। पिछले वर्ष नोट बंदी के कारण लोगो की मानसिकता सरकार विरोधी हो गयी है। लेकिन क्या हम gst को सकारात्मक ले सकते है?? बिलकुल ले सकते है। लेकिन परेशानी वाली बात यह है कि जिस ओर लहर चल रही है लोगो की सोच उसी तरफ है। जब अधिकांश लोग किसी चीज़ का विरोध करते है तो इसका मतलब यह नही होता की विरोध सही है। और रही बात कर प्रणाली की वह तो काफी सालो से चली आ रही है।और मुगलो के समय में कर वसूलने का तरीका भी बहोत खतरनाक था जिससे सभी वाकिफ है। उस समय की कर प्रणाली इतनी कठोर थी की जितना कमाते नही थे उतने से ज्यादा कर देना पड़ता था और कर न देने पर भयावह अत्याचार सहना पड़ता था।यदि तुलना की जाय तो भारत सरकार जनता के साथ ऐसा कुछ तो नही कर रही है। gst में जहा कुछ वस्तुओं पर कर बढ़ाये गए है वही कुछ वस्तुओ पर घटाए भी