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Showing posts from March, 2018

लेखक भले मर जाये, पर लेखनी कभी नही मरती

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मेरी डायरी के हर पन्ने मे, उन पन्नों के हर शब्द में, मैं मरकर भी ज़िंदा रहूंगी। सरस्वती की सृजन्या बन कर उस पहले उपन्यास में, मैं मरकर भी ज़िंदा रहूंगी। बचपन की उन तस्वीरों में, उनसे जुड़ी हर याद में, मैं मरकर भी ज़िंदा रहूंगी। "गुड़िया" जैसे नाम से पापा की जुबान पर, मैं मरकर भी ज़िंदा रहूंगी। देह भले मर जाए पर, कुछ यादों के रूप में, मैं मरकर भी ज़िंदा रहूंगी। - शिवांगी पुरोहित In every page of my diary, In every word of those pages, I'll be alive even after I die. By becoming a creator In that first novel, I'll be alive even after I die. In those pictures of childhood, In every lost memory. I'll be alive even after I die. By the loving name "gudia" On the tongue of my father, I'll be alive even after I die. Even if the body dies, As a few memories, I'll be alive even after I die. - Shivangi Purohit

आखिर कब तक शिवराज का राज

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इस साल मप्र मे मुख्यमंत्री चुनाव है।वर्तमान मुख्यमंत्री जी लगातार तीन बार मप्र का चुनाव जीत चुके है।कहने को तो पिछले पंद्रह सालों में मप्र को चौहान जी ने बहुत कुछ दिया है।मप्र के विकास के लिए अपनी तरफ से सारी कोशिश की है।लेकिन फिर भी जनता के साथ भेदभाव पूर्ण रवैया रखने वाले मुख्यमंत्री जी जनता में अविश्वास जरूर पैदा कर गए। sc st की पदोन्नति रोकने का आदेश था लेकिन मुख्यमंत्री जी ने सभी की पदोन्नतियां रोक दी। इससे लगभग 30000 लोग हकदार होते हुए भी बिना प्रमोशन के रिटायर्ड हो गए। एक मुख्यमंत्री होते हुए भी वे वोट की राजनीति में इतने मशगूल है की आरक्षण के नाम पर पूरी जनता को ठगा जा रहा है। एक आम आदमी यह समझ सकता है की 15 साल में 3 बार प्रमोशन से एक व्यक्ति कहाँ से कहाँ पहुँच सकता है। लेकिन एक नेता यह नही समझ सकता उसे केवल वोट से मतलब है। माना की मप्र ने बहुत विकास कर लिया लेकिन नकारात्मक कार्यों के बारे में विचार करना ही पड़ेगा फिर चाहे कोई हमे विपक्ष कहे या किसी पार्टी का समर्थक। लेकिन ये बाते एक आम आदमी समझता है न की कोई राजनेता। आइये थोड़ी नजर डालते है मप्र इन हालातों पर।नेशनल क्राइम रिपोर

अपने आप को श्रीदेवी का फैन मत कहो,तुम उस लायक नही

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श्रीदेवी जो की भारतीय फ़िल्म जगत की पहली लेडी सुपरस्टार कही जाती है।भारतीय सिनेमा को एक से एक बेहतरीन फ़िल्में देने वाली ये नायिका अब दुनिया छोड़ कर जा चुकी है।श्री देवी की मौत पर पूरा भारत सवाल कर रहा है।कहीं न कहीं सभी को यह लगता है कि उनकी मौत हादसा नही बल्कि हत्या हो सकती है।लेकिन इस संदर्भ में भी कोई मजबूत तर्क सामने नही आ पाया है सभी अलग अलग बातें कर रहे है तो उन बातो का विरोधाभास भी निकाला जा रहा है।उनकी मौत के बाद उनके पति द्वारा मौत का कारण हार्ट अटेक बताया गया था जो की पीएम रिपोर्ट के बाद झूठा साबित हुआ और यह बात सामने आई कि अचेत होकर बाथटब में डूबने से उनकी मौत हुई है। बिना पूरी जाँच पड़ताल के कार्यवाही खत्म कर दी गयी और ये  बात राज ही रह गयी कि श्री देवी के साथ आखिर हुआ क्या था। अब बात करें उन लोगों की जिन्हें श्री देवी ने अपने जीवन काल में इतनी सारी फ़िल्में दी। वे लोग जो अपने आप को उनका फैन कहते है।उन्होंने अब श्रीदेवी का मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया है। यही होता है इस देश में कोई भी मुद्दा हो,कोई भी बात हो ख़ुशी की हो या दुःख की हो यह के नौजवान हर चीज़ को ट्रेंड समझ कर उस पर जोक बना

ये मात्र जीव नही है

पिछले 2 साल से सोशल मीडिया पर एक बूचड़खाने का वीडियो वायरल हो रहा है जिसमे गायो को लटका कर धारदार औजार से उनकी हत्या की जा रही है।इस वीडियो के साथ भारी भरकम शब्दों में एक अपील की जाती है कि " यदि आप सच्चे हिन्दू हैं तो इस वीडियो को इतना शेयर कीजिये कि गौ माता की हत्या करने वालों को कठोर सजा मिल सके।" वाह!बड़ी अजीब मानसिकता है। क्या सोशल मीडिया पर ये वीडियो वायरल करने से गौहत्या बंद हो जायेगी। पहले हम अपने आप को तो सुधार लें। अपने आप को हिन्दू कहने वाले लोग,गाय को माता कहने वाले लोग स्वयं उस गाय का मांस बड़े चाव से खाते है और उस मांस के लिए राजनैतिक व सामाजिक रूप से लड़ते भी है।तो क्यों ये दिखावा करते हो कि तुम्हे उस गाय की चिंता है।हिन्दू धर्म में यह मान्यता है की गाय में 33 करोड़ देवता निवास करते है।अब इस मान्यता को वामपंथी विचारधारा के लोग यदि अंधविश्वास समझे तो समझते रहे लेकिन ये उन लोगो की आस्था है जो गाय को पालते है उसके साथ रहते है उसे भरपूर प्यार करते है वो भी एक परिवार के सदस्य की तरह।हर गांव,हर शहर में सैकड़ो गाय असहाय घूमती रहती है और आये दिन किसी वाहन के नीचे आकर मर जाती

अब होगी बोलती बंद

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मैं अच्छे से जानती हूँ समाज में औरतों के बारें में क्या राय दी जाती है और अधिकतम लोग उनके बारें में क्या सोचते है।इस महिला दिवस इस बारे में थोड़ी सी चर्चा करते है।नारी सशक्तीकरण की ओर तेजी से बढ़ते कदम कहीं न कहीं समाज को महिला विरोधी बना रहे है।आगे बढ़ती महिलायें किसी के गुरुर को चोटिल कर रही है।ये चोट ही महिला विरोधी मानसिकता को जन्म दे रही है।बलात्कार और दहेज़ प्रताड़ना जैसे अपराध अब झूठे लगने लगे है।कहीं न कहीं इन सबके पीछे महिला समाज ही जिम्मेदार है।कुछ महिलाओं और युवतियों के द्वारा लगाये गए झूठे आरोपों तथा अपनी ही गलती को बलात्कार का नाम देकर एक ऐसी मानसिकता को जन्म दे दिया है जो समूचे महिला समाज पर ऊँगली उठा रही है।वो मानसिकता ही अब बलात्कार जैसे घिनोने अपराध पर खिल्लियाँ उड़ाने को मजबूर कर रही है।लेकिन कुछ महिलाओं की गलती समूचे महिला समूदाय पर प्रश्न चिन्ह क्यों लगा रही है? इस सन्दर्भ में थोड़ी सरलता और सहजता की आवश्यकता है।आखिर इतनी फुरसत क्यों है कि महिलाओं के कपड़ों और चाल ढाल पर ध्यान देकर इतना समय बर्बाद किया जाए। यदि अपना अंग प्रदर्शन करना उन्हें पसंद है तो करने दीजिये न।ये दलील