Posts

Showing posts from May, 2018

राजनीति में अंधे लोग

Image
होने दो जो हो रहा है.. मक्कारी से पुल टूटने दो..बेशर्मी से बलात्कार होने दो.. क्या फर्क पड़ता है उस सत्ता में बैठे लोगों को.. उन्हें तो चुनाव चुनाव खेलने दो और आप उनकी अंधभक्ति में लगे रहो। क्या फर्क पड़ता है पुल गिर जाये लोग मर जाएं। आपके प्रिय नेतागण तो दुःख व्यक्त कर पल्ला झाड़ लेते है और आप अंधभक्ति में तालियां बजाते रहते है। कोई फर्क नही पड़ता यदि आपके पड़ोस में बलात्कार हो जाये या आपके घर का कोई पुल के नीचे दब जाये.. आप भक्ति में इतने अंधे हो गए है कि आपमे न संवेदना बची है और न ही इंसानियत। सच कहा है किसी ने कि जनता बेवकूफ होती है, वे हमे  जाति के नाम पर लड़वाएंगे तो हम लड़ेंगे, हमें धर्म के नाम पर लड़वाएंगे हम लड़ेंगे। क्या फर्क पड़ता है लोग मर रहे है, मरने दो। हमें फुरसत कहाँ है हमें फ़िल्म पर लड़ना है,तस्वीर पर पड़ना है, बहुत बड़ी बड़ी लड़ाइयां लड़नी है।क्योकि हम है भारत के वीर सपूत जो जिन्ना की तस्वीर नही रहने देगें,पद्मावती की कमर नही दिखने देंगे। लेकिन पुल गिरेगा लोग मरेंगे हम मरने देंगे.. बलात्कार होगा.. हम होने देंगे। कुछ लोग घायलों को खून देने की होड़ में लगे है। सोशल मिडिया पर अपनी तारीफ

कन्या भोज

शक्ति की प्रति रूपा नारी जो समाज को आधार प्रदान करती है नवीन प्रकृति का निर्माण करती है इसके छोटे प्रतिरूप को नवरात्रि में कन्या भोज करा कर पूजा जाता है क्या कन्या भोज कराना केवल दिखावा है या सम्मान की वास्तविकता और अगर केवल दिखावा या छलावा है तो बंद हो जाने चाहिए शुभ कार्यों में कन्या भोज क्योंकि शुभ कार्यों की सफलता वास्तविकता से है मिथ्या तर्कों से नहीं मेरा प्रस्तुत श्रद्धा वान समाज से है जो नवरात्रि के समय शक्ति की पूजा अर्चना बढ़-चढ़कर करती है और अपने घरों में कन्या भोज कराती है क्या मां के गर्भ में आने वाली बेटी को कन्या भोज का हिस्सा बनाने में डर लगता है क्या उसे बगैर दुनिया में लाए ही मिटा देना श्रद्धा है क्या इस कन्या की कन्या भोज में आवश्यकता नहीं क्या घर में इसकी कोई श्रद्धा युक्त जगह नहीं जो कन्या भोज साल में दो बार कराए जाते हैं क्या इसका प्रतिदिन कराया जाना उचित नहीं क्या कन्या का वास्तविक अस्तित्व  आप को खलता है उन्हें समाज में आने से मत रोको वरना कन्या भोज अधूरा का अधूरा ही रह जाएगा आज कन्या भोज कराने के दिखावे के लिए इतना भटकना पड़ रहा है अरे समाज को दूषित बनाने वालों