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Showing posts from September, 2018

काम धंधे का सवाल.. बहुत ही बुरा है हाल

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हम हैं भारत का युवा वर्ग। हमारे पास इंजीनियर कम्प्यूटर वाणिज्य मैनेजमेंट आर्ट्स आदि सभी डिग्रीया है। लेकिन हमारी ये योग्यता की पोथी फाइलो में बंद पड़ी है। ये बड़ी बड़ी डिग्रीयां लेकर भी हम आज प्राइवेट स्कूलो में ब्लैकबोर्ड पर चॉक घिसने पर मजबूर है जहाँ हमारी मेहनत के बदले दो चार हज़ार रूपये पकड़ा दिए जाते है। क्या आज की दुनिया में चार हज़ार रूपये वेतन पाने वाला शिक्षक अपने परिवार की मूलभूत आवश्यकताओ को पूरा कर सकता है?देश में लाखों युवा ऐसे हैं, जिन्हें रोजगार कार्यालय में पंजीकरण के बाद भी नौकरी नहीं मिलती। इधर रोजगार कार्यालयों की हालत भी खराब होती जा रही है। कहीं स्टाफ की कमी है तो कहीं साधन-सुविधाओं के अभाव में काम नहीं हो रहा।वैसे भी आज के पढे लिखे युवा राजनेतिक एवम् सामाजिक मुद्दों पर दंगा मचाने का काम करने लगे है। चाहे हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई को या किसान आंदोलन। हमारे देश के युवा अपना हुनर सड़को पर दिखाने निकल पड़ते है। यदि इनके पास कोई काम होता तो उन्हें काम की चिंता होती न की दंगा मचाने की। तो हालात कुछ ऐसे हो गए है की आज की शिक्षा प्रणाली पढ़े लिखे बेरोजगार पैदा कर रही है। उच्चतर शिक्ष

मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता

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मनोरंजन के नाम पर इतनी अश्लीलता फैलाई जा रही हैं कि अब मनोरंजन और फूहड़पन में फर्क कर पाना मुश्किल है। जहां सरकार एडवटाइज को लेकर समय निर्धारित कर देती है कि कौन सा एड कितने बजे से कितने बजे तक ही टीवी पर चलना चाहिए ताकि छोटे बच्चों पर इसका प्रभाव न पड़े। वही बेधड़क नेटफ्लिक्स पर बेहूदा वेब सीरीज के लिए लोग पागल हुए जा रहे हैं। आज स्तिथि ऐसी है कि परमाणु जैसी फ़िल्म जो हमें देशभक्ति का एक बेहद सुन्दर सन्देश देती है और भारतीयता की भावना को झकझोर कर बाहर आने को मजबूर कर देती है उस फ़िल्म की अपेक्षा एक अश्लील फ़िल्म को देखने के लिए कई गुना दर्शकों की भीड़ लगी। अब देखा जाये तो इस तरह का फूहड़पन युवाओं की सोच और मानसिकता को अपने अनुसार बदल देता है। जहाँ सिनेमा हमें जगाने का कुछ कर दिखाने का सपना दिखाता है, एक किरदार के जरिये उस तरह का बन जाने की प्रेरणा दे जाता है वही इन किरदारों की वेशभूषा भी युवाओं को बेहद प्रभावित करती है। जिस तरह नीरजा को देख कर लड़कियां प्रेरित हों की हम भी किस दिन नीरजा बन कर दिखाएंगे उसी तरह अभिनेत्रियों की वेशभूषाओं का ऐसा गजब का अनुसरण की फैशन के नाम पर अधनग्न हो कर सड़कों

हरिजन एक्ट के लिए इंसानियत बेच दी

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आप तब तक नही समझोगे जब तक आपके परिजनो को जबरदस्ती झूठे केस में फंसाया जायेगा और बिना जांच पड़ताल के थाने में धर लिए जायेंगे।मारेंगे पीटेंगे लेकिन बहुत देर हो चुकी होगी जब तक ये पता चलेगा कि वे निर्दोष थे।तब तक तो उनकी इज़्ज़त और शारीर का फालूदा बन चूका होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कोई आपसे अधिकार नही छीना था।बस तत्काल गिरफ़्तारी पर रोक लगाई थी कि कोई निर्दोष बिना अपराध सिद्ध हुए गिरफ्तार न किया जाए। लेकिन यहाँ तो सरकार ही भेद्भाव पर उतारु है। सुनने वाला कोई नही है। शायद आपने विष्णु और उसके परिवार के बारे में नहीं सुना होगा क्योंकि ऐसी बातें वायरल नहीं होती जो किसी कानून विशेष के दुरुपयोग को बताए। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के इगलास हस्तपुर का एक दलित इस एक्ट का लाभ लेकर अब तक कई लाख रुपये मुआवजा वसूल चुका है। पुलिस को यह पता चला कि sc st एक्ट के मुकदमे दर्ज कराकर मुआवजा कमाना विष्णु और उसके परिवार वालों का पेशा बन गया है। अब तक 10 मुकदमे दर्ज करा कर लगभग 3,06,000 रुपये वसूल चुका है।इनके परिवार के हर सदस्य ने किसी न किसी पर मुकदमा दर्ज करवाया और हरिजन एक्ट के तहत मुआवजा कमाया। राजनीतिक पार्टिय

विधानसभा चुनाव में चिल्लर पार्टी

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क्या आप जानते है भारत का एक भी विश्वविद्यालय दुनिया के टॉप 200 कि लिस्ट में क्यों नहीं है। आइये विस्तार से बताती हूँ भारत के भूले भटके युवाओं की हालात। आज तक तो यह चल रहा था कि गली के कुछ लड़के मिलकर अपनी समिति बनाकर समाज सेवा करते थे। वो तो काफी अच्छा है कि युवाओं में सामाजिक कल्याण की भावना ऐसे ही विकसित होती है। लेकिन अब.. इन युवाओं को राजनीती के सपने दिखाए जाने लगे है। किसी ने एक मुद्दा पकड़ा कुछ युवाओं को इकठ्ठा किया सड़कों पर नोटंकी की और इनकी देखा देखी और युवा खिंचे चले आये। अब देखा जाये तो इन 3 4 सालों में जितने भी सांप्रदायिक और जातिगत दंगे हुए है वे इसी नौटंकी के चलते हुए है। न जाने क्यों ये प्रशासन इन फर्जी संगठनों को वैद्यता प्रदान करता है और इन्हें मौका देता है देश में अशांति फैलाने का। क्या बिना संगठन के आप लोग इकट्ठे नहीं हो सकते मिलकर काम नहीं कर सकते है।जब काशी में पुल गिरा था तो बीएचयू के छात्रों ने काफी मदद की थी। जहाँ तक यूनिवर्सिटी लेवल के संगठनो की बात है तो वहां तक ठीक मान लेते है। लेकिन ये ही बच्चे जब जातिगत संगठनों से जुड़ते है तो इन्हें राजनीती के सपने दिखाए जाने

मेरी किताब: मेरा अनुभव

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एक बहुत ही गंभीर विषय पर किताब लिखने का और उसे लोगो के सामने प्रस्तुत करने का ये मेरा पहला मौका था।कुछ महीनों तक न तो खाने का होश रहा न सोने का। ऐसा हो सकता है कि पाठक इस किताब के कुछ तथ्यों से सहमत न हों।लेकिन यह किताब किसी भी तरह से किसी व्यक्ति या समुदाय की जातीय या धार्मिक भावनाओ को आहत नही करेंगी। ये पढ़ने वाले की मानसिकता के स्तर पर निर्भर करता है कि वो इस किताब के मूल उद्देश्य को समझ पाता है या नही। इस किताब को हर वर्ग, समुदाय और धर्म का व्यक्ति पढ़ सकता है क्योकि ये किताब किसी भी समुदाय विशेष पर कटाक्ष नही करती है। किताब में मौजूद सभी तथ्य विभिन्न प्रकार के स्त्रोतो से प्राप्त किये गए है जिनके प्रमाण भी किताब में मौजूद है। यह किताब समाज में फैले जाति व्यवस्था और आरक्षण से संबंधित भ्रम को दूर करने के उद्देश्य से लिखी गई है। यह किताब पूरे 1 साल के शोध का निष्कर्ष है जो भारतीयों को अतीत और वर्तमान के कुछ तथ्यों को उजागर कर इस मृग मरीचिका से निकलने में सहायता प्रदान करेगा। किताब लिखने के बाद मैंने महसूस किया कि कुछ लोगों को मुझसे बहुत परेशानी होने लगी है। चाहे वो कोई रिश्तेदार हो या