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Showing posts from October, 2018

भगवान के मंदिर में भी लिंगभेद

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भगवान ने जब हम सभी को एक जैसा बनाया है तो भगवान के मंदिर में ये भेदभाव क्यों? भारत के कई मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। आखिर महिलाओं को इतना तुच्छ क्यों समझा जाता है। ये सारी रीतियाँ आखिर बनाई किसने हैं? क्या भगवान खुद आये थे ये कहने की मेरे मंदिर में सिर्फ पुरुष ही जा सकते हैं। ये सारे घटिया रिवाज इस दोगले समाज ने बनाएं है। एक तरफ कामाख्या देवी के रजस्वला रक्त को प्रसाद में ले जाते है दूसरी तरफ महिलाओं को अपवित्रता के नाम पर मंदिरों में नही जाने देतें। 28 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने केरल के शबरीमाला अय्यप्पा मंदिर मे महिलाओं का प्रवेश निषेध हटा दिया। जिसे मंदिर बोर्ड ने स्वीकार कर लिया। यहां तक कि राजपरिवार की बैठक में भी मंदिर बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ न जाने की बात कही। लेकिन वही स्थानीय लोग और राजनैतिक पार्टियां सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ आ गयी। अब तो ये एक तमाशा बन गया है कि सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले को नही मानना है। आश्चर्य की बात तो ये है कि 10 दिन से जो लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं उनमे महिलाएं भी शामिल हैं। यही नही ये महिलायें शबरीमाला की तरफ आने वा

#metoo

फ़िल्मी दुनिया का एक कड़वा सच जो पूरी दुनिया जानती है कि यहां लड़कियों के साथ क्या क्या होता है और काम पाने के लिए उन्हें  क्या कुछ नही सहना पड़ता। इस बात को सभी जानते है लेकिन जब उन लड़कियों ने खुद सामने आकर metoo कहा तो आश्चर्य क्यों? नाम और शोहरत पाने के लिए न जाने कितने शोषण सहकर वो लड़कियां उचाईयों पर पहुँचती है लेकिन कभी किसी से कहती नही है कि उनका शरीरिक या मानसिक शोषण हुआ क्योकि वे जानती है कि आवाज उठाओगी तो सबसे पहले ये फ़िल्म इंडस्ट्री तुम पर ऊँगली उठाएगी। लेकिन metoo ने इस धारणा को ही बदल दिया। एक के बाद एक अभिनेत्रियों ने अपने साथ हुए शोषण को बया करना शुरू किया तो एक से एक दिग्गज चेहरे सामने आने लगे। शुरुआत नाना पाटेकर से हुई और साजिद खान तक आ गई। ये वे लोग है जिनका एक्टिंग और डायरेक्शन में एक बड़ा नाम है। जाहिर सी बात है इनके कई फैन भी है और इस नाते आरोप लगाने वाली लड़कियों पर भरसक ऊँगली उठाई जा रही है लेकिन देखने वाली बात ये है की उसी फ़िल्म इंडस्ट्री के दुसरे बड़े कलाकार इन पीड़िताओं के पक्ष में है। लेकिन कई लोगों का कहना है कि यूँ 10 साल बाद यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाकर कलाका

अब व्यभिचार जायज

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(मेरे लेखन की एक मर्यादा है इसीलिए मैं इन विषयों पर खुल कर नही लिखती। लेकिन #497 के लिए जो लोग वकालत कर रहे है वे ध्यान रखें उनकी वकालत उनके निजी जीवन पर भी लागू होती है।) जिस तरह की ढील सुप्रीम कोर्ट दिए जा रहा है उसे देख कर लगता है भारत में न्यायपालिका कोई पकड़म पकड़ाई का खेल बन गया है। जो हाथ में आता है वो आउट। जितनी चीजे भारत में हमेशा से प्रतिबंधित या कड़े कानून के दायरे में रही है उन्हें सुप्रीम कोर्ट एक के बाद एक छूट देता जा रहा है। पहले प्रोमोशन में आरक्षण को राज्य सरकारो पर छोड़ दिया शायद ये सोचते हुए की सुप्रीम कोर्ट के फैसले कोई मानता नही कोई कड़ा फैसला सुनाये तो केंद्र सरकार अध्यादेश ला देती है। अब सम्भलो अपना अपना जिसको प्रोमोशन में आरक्षण देना है दो नही देना है मत दो। तो क्या मतलब रहा सुप्रीम कोर्ट का? फिर उसके बाद सम लैंगिकता को वैद्य करार दे दिया। ठीक है चंद लोगों को ख़ुशी मिल गयी। मुबारक हो। फिर व्यभिचार को जायज करार दे दिया। हद है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे महिलाओं के पक्ष को जोर देते हुए जायज ठहराया और पत्नी पति की संपत्ति नही है कहकर धारा 497 की बलि चढ़ा दी। अब बलात्कार को भी