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शिक्षक भर्ती में बंद हो आरक्षण

सही है कि आरक्षण गरीबी हटाओ अभियान नहीं है लेकिन आर्थिक आरक्षण भी देश की गरीबी हटाने में तब तक कामयाब नहीं होगा जब तक भारत की शिक्षा व्यवस्था नहीं सुधर जाती भारत की सरकारी स्कूलों में माइनस मार्क्स वाले शिक्षकों की भर्ती सिर्फ आरक्षण का कोटा पूरा करने के लिए कर दी जाती है और जब ऐसे शिक्षक उन गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं तो वह आठवीं तक ही जबरदस्ती पास किए जाते हैं और 9वीं में आकर फेल हो जाते हैं फिर उन्हें भी अपने माता-पिता की तरह ₹200 दिन मजदूरी करनी पड़ती है। इसलिए आरक्षण चाहे आर्थिक हो या जातिगत इसे शिक्षक भर्ती में पूरे देश में बैन कर देना चाहिए जिससे कोई गरीब का बच्चा आगे तक पढ़ सके। जब यह बच्चे अच्छे तथा गुणी शिक्षकों से पढ़ेंगे तो यह भी होनहार बनेंगे और आगे तक पढ़ सकेंगे। यहां शिक्षकों पर प्रश्न उठाना लाजमी है। आइए एक मामला आपको बताती हूं- मध्यप्रदेश के सिंगरौली में एक महिला शिक्षक कलेक्टर के पास अपना तबादला करवाने हेतु आवेदन लेकर आई थी जब कलेक्टर ने उनके ज्ञान की जांच करने के लिए उन्हें अंग्रेजी में ONE और TWOकी स्पेलिंग लिखने को कहा तो महिला शिक्षक ने लिखा ONA और TOT फिर

saanjhi ek adhoori kahani

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पहली दफा किसी की असल ज़िंदगी को पन्नों पर उतार कर ऐसा महसूस हुआ मानों वो जिंदगी मैंने खुद जी ली हो। कुछ महीनों पहले तक तो सांझी को मै जानती भी नहीं थी लेकिन अब ऐसा लगता है मानो मेरी रूह का एक हिस्सा बन गई है वो। सांझी ने जिंदगी में बहुत संघर्ष किया लेकिन संघर्ष का परिणाम सुख नहीं बल्कि एक भयानक बर्बादी रहा। जिंदगी उजड़ी भी तो ऐसे कि डूबते को तिनके का सहारा भी न मिला। सांझी की कहानी उन हजारों  लड़कियों को एक सीख देगी जो बिना अपने पैरों पर खड़े हुए बड़े फैसले लेकर अपने हाथों से अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर लेती हैं। सांझी के साथ किस्सा थोड़ा अलग था। अपने पैरों पर खड़ी हो सके इतनी बड़ी भी न हुई थी और कई जिम्मेदारियां उसके सिर पर आ बैठी थी। जिम्मेदारियों का बोझ ढोते वो 16-17 साल की लड़की मोहब्ब्त के रास्ते पर चल पड़ी। नरक हो चुकी जिंदगी में वो प्यार ही था जो उसे उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ता था। नादानी में एक बड़ा फैसला ले तो लिया लेकिन भविष्य के प्रति लापरवाही उसकी ज़िन्दगी उजाड़ गई। सांझी की ये कहानी उसके संघर्ष और पीड़ा को दर्शाती है। इस किताब में कई ऐसे पन्ने है जो पाठक को रोने पर मजबूर