saanjhi ek adhoori kahani
पहली दफा किसी की असल ज़िंदगी को पन्नों पर उतार कर ऐसा महसूस हुआ मानों वो जिंदगी मैंने खुद जी ली हो। कुछ महीनों पहले तक तो सांझी को मै जानती भी नहीं थी लेकिन अब ऐसा लगता है मानो मेरी रूह का एक हिस्सा बन गई है वो। सांझी ने जिंदगी में बहुत संघर्ष किया लेकिन संघर्ष का परिणाम सुख नहीं बल्कि एक भयानक बर्बादी रहा। जिंदगी उजड़ी भी तो ऐसे कि डूबते को तिनके का सहारा भी न मिला। सांझी की कहानी उन हजारों लड़कियों को एक सीख देगी जो बिना अपने पैरों पर खड़े हुए बड़े फैसले लेकर अपने हाथों से अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर लेती हैं। सांझी के साथ किस्सा थोड़ा अलग था। अपने पैरों पर खड़ी हो सके इतनी बड़ी भी न हुई थी और कई जिम्मेदारियां उसके सिर पर आ बैठी थी। जिम्मेदारियों का बोझ ढोते वो 16-17 साल की लड़की मोहब्ब्त के रास्ते पर चल पड़ी। नरक हो चुकी जिंदगी में वो प्यार ही था जो उसे उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ता था। नादानी में एक बड़ा फैसला ले तो लिया लेकिन भविष्य के प्रति लापरवाही उसकी ज़िन्दगी उजाड़ गई। सांझी की ये कहानी उसके संघर्ष और पीड़ा को दर्शाती है। इस किताब में कई ऐसे पन्ने है जो पाठक को रोने पर मजबूर