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साँझी की समीक्षा

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आशुतोष तिवारी जी द्वारा - साँझी - एक अधूरी कहानी : एक संक्षिप्त अनुभव                     "प्रेम हमारे समाज में 'पाकड़' का वह वृक्ष है जिससे छाया की अपेक्षा तो सब करते हैं लेकिन कोई उसे अपने आंगन में लगाना पसन्द नहीं करता। प्रेम के किस्से सुनना सबको पसन्द है और उस कहानी के प्रेमी जोड़ों से सहानुभूति भी होती है लेकिन यदि एक प्रेम कहानी हमारा प्रश्रय माँगने लगे तो सबसे बड़ा निंदक भी यह समाज ही होता है। प्रेम को आदर्श बताकर उसका पाठ पढ़ाने वाले समाज को प्रेम के यथार्थ के धरातल पर प्रसन्न हो जाने वाला प्रेमीजोड़ा अपना सबसे बड़ा शत्रु और विद्रोही लगने लगता है। समाज की इसी प्रवंचक विचारधारा को परत-दर-परत खोलती प्रतीत होती है 'साँझी एक अधूरी कहानी' ।                     यह 'लम्बी कहानी', हाँ लम्बी कहानी ही क्योकि यह उपन्यास के धरातल पर तो खरी उतरती नहीं दिखाई पड़ती है, पूरी तरह से उस स्त्री के अपने जीवन के प्रति अविश्वास और संदेश की भावना से ओतप्रोत है जो रूढ़िवादी और तथाकथित छद्म परम्पराओं के खूंटे से बंधी हुई समाज व्यवस्था और परिवार के भीतर स्वयं की स्थिति क