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एक खत दद्दा के नाम

प्यारे दद्दा, मैं जानती हूँ तुम देख रहे हो मुझे। मुझे मालूम है स्वर्ग में ही होंगे तुम। तुम जैसा व्यक्तित्व दूजा कोई और मैंने देखा नही। मेरे बचपन की ढेर सारी मीठी यादों में तुम हो। मुझे अपनी गोद में लेकर जब पीठ थपथपाते हुए कहते थे न - "मौड़ी मेरी है, मैं मौड़ी का हूँ.. प्यार करता हूँ..." ये शब्द वैसे के वैसे मुझे सुनाई देते है। लगता है काफी कुछ छूट गया.. बहुत कुछ रह गया था जो हाथों से रेत सा फिसल गया। तुमसे बहुत सी बातें करनी रह गयी थी, लगता है कुछ पूछना कुछ बताना रह गया था।  अभी एक दिन अचानक फेसबुक वॉच में एक मूवी का सीन आया। तुमने कितनी बार मुझसे कहा था कि एक पिक्चर का नाम है "मैं चुप रहूंगी" उस दिन वो नाम पढ़कर मुझे इतना अफसोस हुआ कि काश मैं वो मूवी तुम्हे दोबारा दिखा पाती। उस दिन मैने वो मूवी अकेले देखी.. वो गाना याद है मुझे जो मैंने तुम्हें आखिरी वक्त पर सुनाया था। "नन्हे से फरिश्ते... तुझसे ये कैसा नाता.. कैसे ये दिल के रिश्ते.." इसे कभी दोबारा सुनने की हिम्मत नही है मुझमें । तुमने ऐसे वक्त पर साथ छोड़ा जब तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत थी। लोगों को लगता है

एक खत माँ के नाम

प्यारी माँ, तुम्हे जाते वक्त ये पता होना चाहिए था कि तुम्हारे जाने से मेरी ज़िंदगी कितनी कठिन हो जाएगी, जीवन के हर पड़ाव पर एक अधूरापन होगा जो तुम्हारी कमी का अहसास कराएगा। यदि तुम आज ज़िंदा होतीं तो जिंदगी कुछ और ही होती। यदि तुमसे बात करने का एक मौका मिले तो मैं सिर्फ एक बात पूछुंगी "क्या खुद को मारने से पहले एक पल भी ये खयाल नही आया, कि तुम्हारे दोनों बच्चों का क्या होगा?" कुछ सवाल ऐसे हैं जो मेरे के साथ ही चले जायेंगे, इनका जबाब मुझे कभी नही मिलेगा। कभी कभी बहुत तकलीफ होती है, मन करता है कि तुम होती तो तुम्हारी गोद में सिर रख कर रो लेती और तुम अपने आँचल से मेरे आँसू पोंछ देती और ये कहती कि "सब ठीक हो जाएगा। मैं हूँ न"...ये ममता भरा आलिंगन कभी मिला ही नही माँ, अम्मा के बूढ़े हाथों को काम से कभी फुर्सत ही नही मिली। तुम होती तो उनका बुढापा इतना कष्टमय नही होता। यकीन मानो, आज वो अपनी संगीता के गुण गा रही होतीं। तुमने किसी को मौका ही नही दिया। मुझे तो इतना भी नही कि तुम्हारा चेहरा याद रख सकूँ। बार बार तस्वीरो में देखकर तुम्हें पहचानती कि माँ ऐसी दिखती थी। चाहूं तो सब हाल