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Showing posts from March, 2017

ऐसी कैसी ज़िन्दगी

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जब मैं छोटी सी थी। पेड़ पर चढ़ने को मचलती थी।पिता डाँटते ये लड़को जैसी गलत मस्तियाँ है। माँ समझती। शाम को रसोई घर में ले जाती। और खाना पकाना सिखाती। कहती कोशिश करो।अगर तुम्हारी इच्छा हो।। जब में कुछ बड़ी हुई। दादी को तो कम एक ही था। काम सीख लो।काम सीख लो।काम सीख लो। मै सोचती क्या बड़े होके नोकरानी बनना है। पर मै नादान थी। दादू न जाने क्या क्या खिलाते। मेरे खेलने खाने के दिन होने का विश्वास दिलाते। फिर एक नाज़ुक समय आया। हर बात में रोक टोक।हर साथ पर संदेह। जीवन लगने लगा बोझ।अपने लगने लगे फ़ांस। कहा गये खेलने खाने के दिन। माँ का लाड़ लगने लगा लताड़। भाई की शरारत।देने लगी हरारत। मेरी इच्छा क्यों नही चलती?? एक दिन मैंने सुना। की मेरी पढ़ाई पूरी हो गयी। लेकिन क्या मैं कॉलेज नही जाऊँगी। भाई भी तो जाता है।क्या में नही जाऊँगी। क्या में कुछ नही बन पाऊँगी।। पापा ने तो फैसला सुना दिया। पर मेरी इच्छा का क्या?? आज में परदे की ओट में छुपकर। देख रही हु उन अंजान लोगो को। जो मुझे अपने घर से पराया करने आये है। मैं देखती हूं माँ की तरफ। जो ख़ुशी से यहाँ वहां दौड़ के काम कर रही है। माँ

ज़िन्दगी का अगला पड़ाव

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आज यह  एक ऐसी स्थिति है जहाँ मेरी ज़िंदगी का एक पड़ाव ख़तम हुआ ।मेरी स्कूल लाइफ बस यही तक थी। लोगो की यह अवधारणा है कि स्कूल लाइफ सबसे आसान होती है कुछ नही करना पड़ता।लेकिन में जानती हूं जो लोग वर्तमान में ही कुछ हासिल कर लेना चाहते है उनके लिए ज़िन्दगी का हर 1 पड़ाव संघर्ष और कठिनाइयों से भरा होता है। मैंने ये कभी नही सोचा की मुझे कुछ नही मिला क्योंकि में 1 लड़की हु और ये बहोत अच्छे से जानती हूं कि मुझे जितना मिला ह उसका आधा भी कई लड़कियों को नही मिलता। अब ज़िन्दगी का अगला पड़ाव ये है कि जो में बनना चाहती हु उसके लिए संघर्ष करना है। मैं बहोत खुशनसीब हु की मेरा ये अगला पड़ाव पढ़ाई और मेरे भविष्य का है। लेकिन याचना मेरी 1 दोस्त उसका अगला पड़ाव उसकी शादी है। ऐसा क्यों। क्या उसे कुछ बनने का अपने पैरों पे खड़े होने का कोई हक नही है??