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Showing posts from 2017

हाँ। ये मेरी ज़िन्दगी है जो लोगो को सरल लगती है।

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(इसे समझना हर किसी के बस की बात नही है) ये सभी तत्व उसकी जिंदगी के अभिन्न अंग है।साथ ही साथ रिश्तों के दायरे अक्सर उसको चूर चूर कर देते है।ऐसे रिश्ते जिनसे उसका वजूद हो।बिना उन रिश्तों के उस लड़की की कोई औकात न हो।वाह रे भगवान् क्या दुनिया बनाई है तूने।यहाँ चीत्कारें यदि पुरुष की हों तो आसमान भी उठा ले।लेकिन एक औरत की चीत्कार को जबान के बहार जाने की इज़ाज़त नही है।वो चीत्कार हमेशा कलेजे के अंदर दबी रहती है और आग की तरह धधकती रहती है।लेकिन जब संसार की जननी मुट्ठी भर पापियों से त्रस्ट होकर कुंठित होकर "मैं" को चुनती है तब वो चीत्कार बहार निकलती है और उस चीत्कार को दबाने का एक ही तरीका होता है कि उसके चरित्र पर ऊँगली उठा दो और उसके लिए वैश्या जैसी गाली का इस्तेमाल करो।यहाँ आकर भाई बहन, बाप बेटी जैसा रिश्ता कोई मायने नही रखता।ये रिश्ते जितने करीबी होते है उतना ही दर्द दे जाते है।फिर एक राज खुला की वो आत्महत्या क्यों करती है।वो अपना संसार बसाती है और बार बार खुद को मारती है।आखिर क्यों? वो समझ गयी क्योंकि उसंने वो महसूस कर लिया।उसने वो सब सह लिया जिसके कारण हर बार वो अपने बच्चों

क्या नारी सशक्तिकरण झूठ,फरेब को बढ़ावा दे रहा है।

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आज भारत जिस रफ़्तार से नारी सशक्तिकरण की ओर बढ़ रहा है ठीक उसी तरह इसका दुरूपयोग भी बढ़ता जा रहा है।आखिर क्या कारण है कि दहेज़ प्रताड़ना और बलात्कार संबंधी मामलों को सुलझाने में न्यायालय को 5 से लेकर 10 वर्ष तक का समय लग जाता है? सबका कारण एक ही है, हत्याओं तथा आत्महत्याओं के मामले में दहेज़ प्रताड़ना के झूठे केसों की बढ़ती संख्या तथा प्रेमी युगलों द्वारा की गयी बेवकूफियों को बलात्कार का रूप देना।जहाँ एक ओर अबला नारी पर हुई घरेलू हिंसा के मामले सालों तक न्यायालय में रखी फाइलों में सड़ते रहते है वही दूसरी ओर दहेज़ प्रताड़ना के झूठे केसों की दर्ज संख्या बढ़ती जाती है।जहां एक ओर अंगारों से दागी हुई महिला न्यायालय में इन्साफ की भीख मांगती रह जाती है वहीं दूसरी ओर एक निर्दोष पिता अपने बच्चों और परिवार को छोड़ सलाखों के पीछे पहुँच जाता है।यही हालात बलात्कार संबंधी मामलों के भी है।भारत में हर साल दर्ज 34000 दुष्कर्म के केसों में जितने सैंकड़ों केस झूठे होते है या प्रेमी युगलों की गलतियों के परिणाम होते है उतने ही सैंकड़ों केस समाज में बदनामी के डर से दबे रह जाते है और निर्दोष लड़कियो के साथ हुई दरिंदगी का न्

पद्मावती पर इतना हंगामा क्यों???

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आज एक फ़िल्म पद्मावती के कारण पूरा भारत जाति विशेष में बँट गया है।आज ही सबको याद आया की कोई नारी हमारी आन बान और  शान है।जबकि रोज एक लड़की की आबरू लुटती है यहां। तो फिर क्यों लोग एक दुसरे की गर्दन काटने पर उतारू हो गए है।जहां एक नारी पद्मावती हमारा सम्मान है वहां लोग दूसरी नारी की नाक काटना चाहते है।आखिर क्यों? फ़िल्म पद्मावती की पब्लिसिटी के लिए जो अफवाह फैलाई गयी क्या किसी ने उसकी सच्चाई जानने की कोशिश की?आज सब मिलकर खुद अपने भारत की गरिमा को दाव पर लगा रहे है वो भी सिर्फ एक फ़िल्म के कारण।बड़े बड़े संगठन इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुई है ऐसा कह कर देश भर में दंगे की तयारी कर रहे है,भारत बंद करने की तैयारी कर रहे है,सिनेमाघरों में तोड़ फोड़ की तयारी कर रहे है।जबकि किसी को इस फ़िल्म के बारे में कुछ भी नही पता है।एक ओर संजय लीला भंसाली जहाँ पेशवा बाजीराव के वीर साहसी चरित्र को एक प्रेम कहानी के रूप में सबके सामने ला ता है तब कोई मराठा इसके विरोध में नही आया और आज जो फ़िल्म किसी ने देखी ही नही उसे लेकर भारत भर में राजपूतों सहित सभी जातियों ने तहलका मचा रखा है।फ़िल्म के निर्देशक अपनी फ़िल्म की पब्लिसिटी

जीकर देखो एक पीड़िता की ज़िन्दगी

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कभी कभी सोचती हूँ कि मैं खुशनसीब हूँ जो मेरे साथ बलात्कार नही हुआ।मुझे लोग पीड़िता नही कहते।मीडिया वाले मेरे मुँह में माइक घुसेड़ कर मेरा चेहरा धुंधला कर मुझसे ये नही पूछते की क्या हुआ था।मैं वो नही हूँ जिसके परिवार को सालों तक कोर्ट के चक्कर काटने है।वो डॉक्टर मुझे शक की निगाहों से नही देखता कि कहीं सहमति से तो नही हुआ।मैं वो नही हूँ जिसे महिला पुलिसकर्मी के आभाव में पुलिस वाले के सवालों का जबाब देने में असमंजस होता है।सोचती हूँ अच्छा है,मुझे देख मोहल्ले के लोग कानाफूसी नही करते।मेरे घरवाले मुझे कोसते नही कि - तू पैदा ही क्यों हुई थी। हाँ.. मैं वो नही हूँ, लेकिन वो हज़ारों लडकिया जिनके साथ बलात्कार हुआ उन्हें ये सब सहना पड़ता है।उन बलात्कारियो से मैं कहना चाहती हूँ कि एक बार जीकर देखो एक पीड़िता की ज़िन्दगी।एक बार महसूस करो उस परिवार का दर्द और उस बेटी का दर्द। भारत में प्रतिदिन 85 बलात्कार होते है और एक साल में संख्या कई हज़ारो की होती है जिनमे कई लडकिया जिन्हें या तो मार दिया जाता है या फिर वे खुद आत्महत्या कर लेती है।बाकी बची लडकिया जिल्लत भरी ज़िन्दगी जीती है।बहुत कम लडकिया ऐसी है जो वा

बस थोडा सा त्याग और थोड़ी सी मिलनसारिता।

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आज कल सोशल मिडिया पर जहाँ देखो वहा आरक्षण विरोधी गला फाड़ फाड़ कर आरक्षण का विरोध कर रहे है।वे चाहते है की भारत आरक्षण मुक्त हो जाय।भारत का संविधान लागू होने से लेकर अब तक आरक्षण हर जगह व्याप्त है।लेकिन आरक्षण मिलता भी है तो केवल जातिगत बुनियाद पर।क्या ये जरूरी है की जिन्हें आरक्षण मिल रहा है वे योग्य है या वे गरीब है।अपितु आर्थिक रूप से सुदृण तो दलित भी है।आज क्या नही है आरक्षण प्राप्त लोगो के पास उनके पास घर है नोकरी है बच्चे अच्छे स्कूल कॉलेजों में पढ़ रहे है और क्या चाहिए।रहा सहा उन्हें मंदिरो में पुजारी बनना था तो वो भी बन गए लेकिन केवल भेदभाव की बुनियाद पर।पुजारी के रूप में एक दलित का स्थापित होना भेदभाव को वही ख़त्म कर देता है तो क्या अब आरक्षण बन्द कर देना चाहिए।हर एक सवर्ण यही चाहता है।लेकिन क्या किसी ने सोचा है की जिस प्रकार आरक्षण हटाना हमारा स्वार्थ है उसी प्रकार आरक्षण प्राप्त करना उन लोगो का स्वार्थ है।सरकार आरक्षण क्यों नही हटाती है?? वो इसीलिए नही  क्योकि दलितों के द्वारा प्राप्त होने वाले वोट कम हो जायेगे।बल्कि जो योग्य व्यक्ति सत्ता को अपने हाथ में लिए बैठा है उसे भारत की

भारत में घटता शिक्षा का स्तर

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देखा जाए तो उच्चतर शिक्षा व्यवस्था के मामले में अमरीका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर भारत का नाम आता है। लेकिन जहाँ तक गुणवत्ता की बात है दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।कथित रूप से भारत में स्कूल की पढ़ाई करने वाले नौ छात्रों में से एक ही कॉलेज पहुँच पाता है जिसकी वजह है स्कूलो में नियमित और उचित शिक्षा व्यवस्था का न होना।भले ही सरकार और निजी विद्यालय अपने स्तर पर कितनी भी कोशिश करें।लेकिन आज का युग शिक्षा के क्षेत्र में कोचिंग सेंटरों का युग बन चुका है।सरकारी नोकरी या ढंग की जॉब न होने के कारण 2000 से 5000 रूपये वेतन पाने वाले प्राइवेट शिक्षको ने निजी कोचिंग संसथान चलाने शुरू कर दिए और पूरी शिक्षा प्रणाली की बैंड बजा दी। ये बात अलग है की अपनी जरूरते पूरी करने के लिए कुछ बच्चों को घर पर पढ़ाना और उनसे न्यूनतम शुल्क लेना। लेकिन आज हालात कुछ ऐसे हो गए है की लोगो ने शिक्षा को धंधा बना लिया है। बड़े बड़े कोचिंग संसथान खुल चुके है जो सैकड़ो की तादात में विद्याथियों को प्रवेश देते है और हज़ारो रूपये लुटे जाते है। इस वज़ह से विद्यालय केवल परीक्षा पास करने

सबका कारण शराब ही है

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भारत सरकार से 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू किया जिसमे खाने पीने प्रत्येक चीज़ पर 4 से 12 प्रतिशत टैक्स लगाया गया। लेकिन शराब पर टैक्स नही लगाया गया फिर भी उसकी कीमतों में 15% की बढ़ोत्तरी हुई।ऐसा इसीलिए हुआ क्योकि शराब बनाने मे जिस कच्चे माल का उपयोग किया जाता है वो सभी gst के अंतर्गत है।कच्चे माल के रूप में उपयोग किये जाने वाले सामानों पर 15 से 28% तक टैक्स लगाया गया है।इससे हुआ ये की नव उत्पादित शराब महँगी हो गयी।लेकिन इस बात से खरीदने वाले को कोई फर्क नही पड़ा।चाहे उसके पास पैसे हो या न हो वो उधार लेकर भी शराब पियेगा।भारत में होने वाली घरेलु हिंसा की 90% घटनाएं शराब पीने वाले लोग करते है।शराब में पाये जाने वाले अल्कोहोल को ज्यादा मात्रा शारीर के लिए हानिकारक होती है।इससे आसपास के माहौल को भाँपने में शारीर गड़बड़ाने लगता है और सोचने समझने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है।इंसान खुद को सभी झंझटों  से मुक्त समझने लगता है। डब्लू एच ओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में शराब पीने के कारण 33 लाख लोगो की मौत होती है।भारत की बात करें तो यहाँ प्रतिदिन 15 लोगो की मौत शराब पीने के कारण होती है।शराब संबंधी

ये हमारा ताज 👑 है...

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दुनिया के सात अजूबो में हमारे देश की एक धरोहर शामिल है जिस पर हमे गर्व होना चाहिए।लेकिन न जाने क्यों लोग उस धरोहर पर कीचड़ उछाल रहे है।कुछ दिनों से ताजमहल का नाम राजनेतओं से लेकर आम आदमी तक की जुबां पर है।दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल विवादों में उलझा हुआ है।इसकी शुरुआत भाजपा विधायक संगीत सोम ने अपने बेतुके बयान से की थी।उनके द्वारा दिए गए इस बयान के बाद से राजनीती से लेकर मीडिया तक तहलका मच गया।इनका समर्थन करने वाले देशभक्ति की आड़ में हिंदुत्व का डंका बजाने लगे और विरोध करने वाले गला फाड़ फाड़ कर देश की धरोहर की खूबियां बताने लगे।वही कुछ लोग ऐसे भी है जो ताजमहल में घुसकर शिव चालीसा का पाठ करने लगे।क्या इनसे कोई पूछेगा की ये साबित क्या करना चाहते है?कही ऐसा न हो की दुनिया के सात अजूबो में से ताजमहल को हटा कर इन लोगो का नाम जोड़ दिया जाए।यहाँ रोज के विवाद और बयानों की बौछारे हो रही थी कि खबर आई उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ताजमहल जाएंगे और वहां झाड़ू भी लगायेगे।ये बात तो समझ से बाहर है की ये राजनेता लोग हमेशा सड़को पर झाड़ू लगाने क्यों आ जाते है।आये दिन अख़बार इन खबरों से भरा रहता

ये है भारत के अन्नदाता के हालात

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भारत के विभिन्न राज्यो में किसान आंदोलन के बाद भी किसानो की परेशानियां ख़त्म होती नही दिख रही हैं।हजारों रुपयो का प्रीमियम भरने के बाद भी किसानो को मुआवज़ा नही मिल रहा है।यहाँ किसानो का कई करोड़ का बीमा अटका हुआ है और सरकार की ओर से अभी तक कोई सर्वे शुरू ही नही किया गया।कभी कम बारिश से खेतो में खड़ी धान सूख जाती है तो कभी बहुत ज्यादा बारिश से उड़द की फसल चौपट हो जाती है।फसल की ऐसी हालात से किसानो को मुनाफा क्या,लागत भी नही मिलती और सरकार से कोई मुआवज़ा भी नही मिलता।बात मप्र की करे तो यहाँ इस समय कुल 85 लाख छोटे बड़े किसान है।इसमें करीब 50 लाख किसानो पर 60 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ है और अभी तक किसी का क़र्ज़ माफ़ नही किया गया है।वही उप्र में योगी सरकार ने पहले तो सितम्बर 2017 में किसानो के 1.5 लाख के कर्ज पर 1 पैसा माफ़ कर किसानो को असमंजस में डाल दिया और फिर जाने क्या हुआ की आचानक 9 अक्टूबर 2017 को किसानो के क़र्ज़ माफ़ी की घोषणा कर दी।उप्र के 12 लाख 61 हज़ार किसानो का 75% क़र्ज़ सरकार ने को-ओपरेटिव बैंक को चुकाया और 25% क़र्ज़ माफ़ कर दिया।साथ ही साथ किसानो के बंद किये गए खाते वापस खुलवा दिए गए।उप्र का नाम किसा

सोशल मीडिया पर की गयी एक गलती बन सकती है अपराध।

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आज सोशल मीडिया हमारी ज़िन्दगी का एक अहम् हिस्सा बन गया है।हालात कुछ ऐसे है की हम 3-4 घंटे भूखे रह सकते है लेकिन सोशल मीडिया से दूर नही रह सकते।14 वर्ष के बच्चे से लेकर 75 साल के बुजुर्ग तक सोशिल मीडिया पर समय बिताते है।इनमे 77.5% पुरुष था 76.2 % महिलाये शामिल है।यह एक ऐसा प्लेटफार्म है जिसे हम एक तरफ ज्ञान का भंडार और रोजगार का साधन मान सकते है और दूसरी ओर धोखाधड़ी और अपराध का स्त्रोत कह सकते है।बात केवल भारत की करें तो इसका गलत इस्तेमाल करने में भारतीय पीछे नही है।भारत में सोशल मीडिया का दुरूपयोग कुछ इस तरह से होता है की धोखाधड़ी और हिंसा फैलाने जैसे काम आये दिन होते रहते है।लेकिन कई लोग इस बात से अनभिज्ञ है की आईटी एक्ट 66 के अंतर्गत साइबर अपराधियो को सजा का प्रावधान है।साथ ही साथ कोई भी ऐसा कंटेंट जो कानून के नजर में गलत है, वह अगर सोशल साइट पर डाला जाता है, तो वह अपराध की श्रेणी में आता है और इसके लिए आईटी ऐक्ट की धारा-66 ए के  तहत कार्रवाई की जा सकती है। सोशल मीडिया ने भारत के किशोर और युवा वर्ग को इतना बहका दिया है की आये दिन वे स्वयं भी गलतिया करते है और शिकार भी होते है।कभी ब्लू व