हाँ। ये मेरी ज़िन्दगी है जो लोगो को सरल लगती है।

(इसे समझना हर किसी के बस की बात नही है)
ये सभी तत्व उसकी जिंदगी के अभिन्न अंग है।साथ ही साथ रिश्तों के दायरे अक्सर उसको चूर चूर कर देते है।ऐसे रिश्ते जिनसे उसका वजूद हो।बिना उन रिश्तों के उस लड़की की कोई औकात न हो।वाह रे भगवान् क्या दुनिया बनाई है तूने।यहाँ चीत्कारें यदि पुरुष की हों तो आसमान भी उठा ले।लेकिन एक औरत की चीत्कार को जबान के बहार जाने की इज़ाज़त नही है।वो चीत्कार हमेशा कलेजे के अंदर दबी रहती है और आग की तरह धधकती रहती है।लेकिन जब संसार की जननी मुट्ठी भर पापियों से त्रस्ट होकर कुंठित होकर "मैं" को चुनती है तब वो चीत्कार बहार निकलती है और उस चीत्कार को दबाने का एक ही तरीका होता है कि उसके चरित्र पर ऊँगली उठा दो और उसके लिए वैश्या जैसी गाली का इस्तेमाल करो।यहाँ आकर भाई बहन, बाप बेटी जैसा रिश्ता कोई मायने नही रखता।ये रिश्ते जितने करीबी होते है उतना ही दर्द दे जाते है।फिर एक राज खुला की वो आत्महत्या क्यों करती है।वो अपना संसार बसाती है और बार बार खुद को मारती है।आखिर क्यों? वो समझ गयी क्योंकि उसंने वो महसूस कर लिया।उसने वो सब सह लिया जिसके कारण हर बार वो अपने बच्चों को अकेला छोड़ कर आत्महत्या करती थी।लेकिन आज उसके पास दो रास्ते है पहला ये कि कुछ ऐसा गाना गुनगुनाय "अच्छा चलते है,दुआओ में याद रखना,मेरे ज़िक्र का जुबां पे स्वाद रखना,दिल के संदूकों में मेरे अच्छे काम रखना,चिट्ठी-तारों में भी मेरा तू सलाम रखना" और फिर संसार को अलविदा कहदे,अपने परिवार को अकेला छोड़ दे।मतलब पुनः आत्महत्या कर ले। दूसरा रास्ता कहता है कि कुछ ऐसा गाना गुनगुनाये "जो भी तूने किया है, वो वैरी वैरी राईट है,भूतकाल को भूल जा अब तो,आने वाला फ्यूचर वैरी वैरी ब्राइट है।" और फिर अपने संघर्ष को जारी रखते हुए जिंदगी के खुशनुमा पहलुओं को पीछे मुड़कर देखे।यह देखे कि वो रिश्ता नारियल कि तरह है जो अंदर से नरम है।वो एक ऐसी पर्सनालिटी है जो नशे में तिलमिला उठती है और होश में अंदर ही अंदर प्यार करती है लेकिन कभी जताती नही है।पहला रास्ता जो इतिहास दोहराता है और दूसरा रास्ता इतिहास बनाता है।अंत में यह कहना गलत नही होगा कि " संघर्ष में व्यक्ति अकेला होता है और सफलता में दुनिया उसके साथ होती है।
- शिवांगी पुरोहित (जो कभी लिखना नही छोड़ेगी क्योकि अब लेखन ही उसकी ज़िन्दगी है)

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