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Showing posts from September, 2017

कब समझेंगे हम??

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शायद भारत की किस्मत में यही लिखा है की हर महीने देश के किसी न किसी हिस्से में कोई न कोई आंदोलन या दंगा फसाद होना ही है। कभी हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई,कभी किसान आंदोलन,कभी राम रहीम के चेलो का आतंक और अब वाराणसी में छात्राओ का आंदोलन।Bhu का मामला इस वक्त काफी गरमाया हुआ है। मीडिया से लेकर चौपालो तक इस बात की चर्चा चल रही है और लोग अपना अपना मत दे रहे है। एक तरफ छात्राओ की मांग सुरक्षा की है और दूसरी और वे यह भी कहती है की उन्हें रातों को घूमने से न रोका जाये।उनमे और पुरुषो में यह भेद न किया जाय। यदि पुरुष सुरक्षित रूप से रातो को घूम फिर सकते है तो लड़कियो को न रोका जाये। सीधा सीधा अर्थ यह है की भारत की अधिकांश लडकिया पुरुषो के समकक्ष होना चाहती है।इसीलिए bhu की छात्राएं मिलकर आंदोलन कर रही है और ये संकेत कर रही है की वे पुरुषो से कम नही है वे भी दंगा फसाद कर सकती है और अशांति फैला सकती है।यदि वे सचमुच पुरुषो की भाँति है तो लाठी चार्ज होने पर रोना धोना क्यों?? जब पुरुषो का आंदोलन होता है तो पुलिस सारी हदें पार कर देती है।लड़के इतना पिटते है की खून से लथपथ हो जाते है तो फिर इस बार बात लड़कियो की

पी एम से उठ रहा है जनता का विश्वास

बात करें यदि काले धन की तो यह भ्रष्टाचार का मुख्य अंग है। पहले ऐसा माना जाता था की काला धन विदेशो में है जो भारतीय राजनेताओ द्वारा अपनी अंधाधुंध आय से बचा कर स्विश बैंक जैसी विदेशी संस्थाओ में जमा किया गया है। लेकिन पिछले वर्ष 2016 में यह पता चला की काला धन तो भारत की गरीब जनता के पास है वह जनता जो अपने बच्चों की शादी और पढाई लिखाई के लिए काला धन जमा कर रही है। देखते ही देखते जनता की यह जमा पूंजी कागज के टुकड़ो में बदल गयी। बीते 8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक फैसला लिया जिसमे 500 और 1000 के नोट 12 बजे के बाद गैर कानूनी हो गये ।कुछ जानकार इसे काले धन की दिशा में एक ऐतिहासिक फैसला मान रहे है तो कुछ इसे सरकार द्वारा जल्दबजी में लिया गया एक फैसला मान रहे है पर अभी चर्चा इस बात की है क्या सरकार के इस फैसले से आम आदमी खुश है या नाराज़ है तो इस पर कई जहग लोगो की अलग अलग प्रतिक्रियाए है इस् पर खुल के ये नहीं कहा जा सकता है की आम आदमी खुश है या नाराज़ । यदि हम इसके नुकसान की बात करे तो जिस दिन से नोटबंदी का ऐलान हुआ है तब से छोटे व्यापारी और दैनिक मजदूरों की ज़िन्दगी अस्त व्यस्त