पी एम से उठ रहा है जनता का विश्वास

बात करें यदि काले धन की तो यह भ्रष्टाचार का मुख्य अंग है। पहले ऐसा माना जाता था की काला धन विदेशो में है जो भारतीय राजनेताओ द्वारा अपनी अंधाधुंध आय से बचा कर स्विश बैंक जैसी विदेशी संस्थाओ में जमा किया गया है। लेकिन पिछले वर्ष 2016 में यह पता चला की काला धन तो भारत की गरीब जनता के पास है वह जनता जो अपने बच्चों की शादी और पढाई लिखाई के लिए काला धन जमा कर रही है। देखते ही देखते जनता की यह जमा पूंजी कागज के टुकड़ो में बदल गयी। बीते 8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक फैसला लिया जिसमे 500 और 1000 के नोट 12 बजे के बाद गैर कानूनी हो गये ।कुछ जानकार इसे काले धन की दिशा में एक ऐतिहासिक फैसला मान रहे है तो कुछ इसे सरकार द्वारा जल्दबजी में लिया गया एक फैसला मान रहे है
पर अभी चर्चा इस बात की है क्या सरकार के इस फैसले से आम आदमी खुश है या नाराज़ है तो इस पर कई जहग लोगो की अलग अलग प्रतिक्रियाए है इस् पर खुल के ये नहीं कहा जा सकता है की आम आदमी खुश है या नाराज़ । यदि हम इसके नुकसान की बात करे तो जिस दिन से नोटबंदी का ऐलान हुआ है तब से छोटे व्यापारी और दैनिक मजदूरों की ज़िन्दगी अस्त व्यस्त हो गयी है जहाँ दैनिक मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल रही है, नोटबंदी के कारण सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गवां दी। आम जनता, किसान, मजदूर, अनौपचारिक क्षेत्र में लगे मजदूर, छोटे उद्यमी और समाज के अन्य कमजोर वगरें के लोग नोटबंदी से काफी परेशान हुए। नोटबंदी के कारण देश को अकेले चौथी तिमाही में 3 लाख करोड़ जीडीपी गंवानी पड़ी है। क्या सरकार ने लोगो की समस्याओ को सुलझाने के के लिए कोई खास कदम उठाये है मेरी नज़र में सरकार का ये फैसला ऐतिहासिक ज़रूर है और इससे देश को फायदा ज़रूर होगा । परन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की अभी देश की जनता का हाल बहुत दैनीय है आने वाले समय में इसके फायदे ज़रूर होंगे परन्तु आज की समस्या से कितने ज्यादा फायदे होंगे इसका आंकलन करना मुश्किल है।पिछले हफ्ते ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एनुअल रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट में बताया गया कि नोटबंदी के बाद 1000 और 500 के करीब 99 फीसदी नोट यानी 15.28 लाख करोड़ रुपए बैंकों में लौट आए हैं। इसके अलावा 1000 रुपए के 632.6 करोड़ नोटों में से 8.9 करोड़ नोट लौटकर नहीं आए ।जीडीपी ग्रोथ में आई गिरावट के लिए अर्थशास्त्री जहां एक तरफ नोटबंदी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं सरकार इसके पीछे जीएसटी को मुख्य वजह बता रही है।इसी विषय को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कहा था कि आने वाले कुछ महीनों में विमुद्रीकरण एक विशाल त्रासदी में परिणत हो सकता है। पुराने नोट बंदी पर सवाल उठाते हुए कहा था कि नोटबंदी से देश की जीडीपी पर बड़ा असर होगा भारत देश की जीडीपी में 2 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है, बरहहाल अब यह कहना गलत नहीं होगा कि 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर राज करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की बातों में दम है और यही कारण है कि शायद उनकी यह भविष्यवाणी सही साबित हो रही है।नोट बंदी का असर तो हुआ लेकिन इस कदम से भारत की अर्थव्यवस्था कई महीनो तक तहस नहस रही। अब भ्रष्टाचार ख़त्म हुआ या नही यह तो आखो देखी बात है। नोट बंदी के 9 महीने बाद भी सरकार के पास इस बात का जबाब नही है की काला धन वापस आया या नही।सरकार का कहना है की अब नोटों की आपूर्ति ठीक से हो रही है नोटों को लेकर कही कोई किल्लत नहीं है लेकिन कथित रूप से ये जानकारी मिली है की उत्तराखंड के लम्बगांव में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की शाखा अब भी नोटों की किल्लत से जूझ रही है जहाँ न तो बैंक में नोट है और न ही एटीएम में। वही रिजर्व बैंक नोट बंदी के 8 9 महीने बाद तक नोटों की गिनती में ही लगा रहा।इस आधार पर अर्थव्यवस्था को तहस नहस करने वाले इस विमुद्रिकरण ने केवल जनता को परेशान किया और साथ ही साथ जनता के दिलो में हीरो बन बैठे मोदी जी पर से जनता का विश्वास उठ सा गया।
- शिवांगी पुरोहित

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