बस थोडा सा त्याग और थोड़ी सी मिलनसारिता।

आज कल सोशल मिडिया पर जहाँ देखो वहा आरक्षण विरोधी गला फाड़ फाड़ कर आरक्षण का विरोध कर रहे है।वे चाहते है की भारत आरक्षण मुक्त हो जाय।भारत का संविधान लागू होने से लेकर अब तक आरक्षण हर जगह व्याप्त है।लेकिन आरक्षण मिलता भी है तो केवल जातिगत बुनियाद पर।क्या ये जरूरी है की जिन्हें आरक्षण मिल रहा है वे योग्य है या वे गरीब है।अपितु आर्थिक रूप से सुदृण तो दलित भी है।आज क्या नही है आरक्षण प्राप्त लोगो के पास उनके पास घर है नोकरी है बच्चे अच्छे स्कूल कॉलेजों में पढ़ रहे है और क्या चाहिए।रहा सहा उन्हें मंदिरो में पुजारी बनना था तो वो भी बन गए लेकिन केवल भेदभाव की बुनियाद पर।पुजारी के रूप में एक दलित का स्थापित होना भेदभाव को वही ख़त्म कर देता है तो क्या अब आरक्षण बन्द कर देना चाहिए।हर एक सवर्ण यही चाहता है।लेकिन क्या किसी ने सोचा है की जिस प्रकार आरक्षण हटाना हमारा स्वार्थ है उसी प्रकार आरक्षण प्राप्त करना उन लोगो का स्वार्थ है।सरकार आरक्षण क्यों नही हटाती है?? वो इसीलिए नही  क्योकि दलितों के द्वारा प्राप्त होने वाले वोट कम हो जायेगे।बल्कि जो योग्य व्यक्ति सत्ता को अपने हाथ में लिए बैठा है उसे भारत की चिंता है की यदि आरक्षण बंद कर दिया तो भारत के हर कोने में दलितों द्वारा दंगा होगा।मार काट होगी और मौतें भी होंगी।पूरा भारत अशांति के शिकंजे में आ जायेगा।तो क्या हम कोई ऐसा रास्ता नही निकाल सकते जो भारत के हित में हो जो दलितों और सवर्णों दोनों के हित में हो।और वो रास्ता है आर्थिक आधार पर आरक्षण देना।आरक्षण की बस एक नीति में बदलाव करके कि जाति के हिसाब से नही आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाए और ऐसा करने से भारत की आर्थिक स्तिथि भी सुधरेगी।जब हम अपने स्वार्थ को दूर रखकर आरक्षण के सम्बन्ध में एक नेक कदम उठाएंगे तब हम असल में भारतीय कहलायेंगे।जहाँ सवाल यह उठता है की आर्थिक रूप से सुदृण दलित और सवर्ण दोनों ही बीपीएल कार्ड धारण किये हुए है तो सबसे पहले सरकार द्वारा बीपीएल कार्ड धारियों की समीक्षा की जानी चाहिये।जब पूर्णतः पारदर्शिता आ जाये तो आरक्षण की नीति में बदलाव कर आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाने लगेगा।इससे  भारत में व्याप्त जाति संबंधी समस्याएं तो वेसे ही समाप्त हो जायेगी क्योकि तब कोई सवर्ण दलित को गाली नही देगा और कोई दलित सवर्णो को नही कोसेगा। यहाँ कॉलेजो में सीट न मिलने पर दुःख भी नही होगा की हमारी सीट किसी गरीब के काम आई।जबकि हमारे पालकों की आय 8 लाख रुपया सालाना है।यदि भारत को एक विकसित भारत बनाना है तो थोडा सा त्याग और थोड़ी सी मिलनसारिता जरूरी है ।लेकिन यदि सरकार आरक्षण पूर्णतः बंद करने में सक्षम है तो उसे भविष्य में होने वाले दंगो पर नियंत्रण रखने में भी सक्षम होना चाहिए।लेकिन इस तथ्य पर भारत की जनता का विश्वास तब ही उठ गया था जब एक बलात्कारी बाबा के समर्थकों ने देश भर में दंगा मचाया था और सरकार कुछ नही कर सकी थी।फिर आरक्षण का हटना तो बहुत बड़ी बात है तो इससे होने वाले दंगे भी बड़े ही होंगे।जहाँ एक ओर चुनाव के चलते पार्टियां इस बात का हवाला दे रही है कि वे 75% आरक्षण देंगी।दूसरी और केंद्र के कुछ मंत्री आर्थिक आरक्षण लागू करने की बात कर रहे है।वहीं एक युवा नेता पाटीदारो को आरक्षण देने का वादा कर अपनी समाज के लोगों को इकठ्ठा कर रहा है।जहाँ हम बात करते है कि भारत के युवा ही नई नीतियाँ लाएंगे और भारत की परिस्तिथियों में सुधर करेंगे।लेकिन यहां एक युवा केवल अपनी जाति का उद्धार करने के लिए आरक्षण की दलीलें दे रहा है।केवल चुनाव जीतने के लिए जाति विशेष को आरक्षण देने की बातें करना इसी बात की ओर संकेत करता है कि इस तरह के युवा केवाल नेतागीरी के भूखे होते है और जाति वाद को बढ़ावा देते है।जहां देश के अन्य युवाओ और गरीब परिवारों के साथ भेदभाव हो रहा है वही आरक्षण में न तो कोई परिवर्तन हो रहा है न ही आरक्षण पर रोक लगने जैसा कोई कदम उठाया जा रहा है।

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