पद्मावती पर इतना हंगामा क्यों???

आज एक फ़िल्म पद्मावती के कारण पूरा भारत जाति विशेष में बँट गया है।आज ही सबको याद आया की कोई नारी हमारी आन बान और  शान है।जबकि रोज एक लड़की की आबरू लुटती है यहां।
तो फिर क्यों लोग एक दुसरे की गर्दन काटने पर उतारू हो गए है।जहां एक नारी पद्मावती हमारा सम्मान है वहां लोग दूसरी नारी की नाक काटना चाहते है।आखिर क्यों? फ़िल्म पद्मावती की पब्लिसिटी के लिए जो अफवाह फैलाई गयी क्या किसी ने उसकी सच्चाई जानने की कोशिश की?आज सब मिलकर खुद अपने भारत की गरिमा को दाव पर लगा रहे है वो भी सिर्फ एक फ़िल्म के कारण।बड़े बड़े संगठन इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुई है ऐसा कह कर देश भर में दंगे की तयारी कर रहे है,भारत बंद करने की तैयारी कर रहे है,सिनेमाघरों में तोड़ फोड़ की तयारी कर रहे है।जबकि किसी को इस फ़िल्म के बारे में कुछ भी नही पता है।एक ओर संजय लीला भंसाली जहाँ पेशवा बाजीराव के वीर साहसी चरित्र को एक प्रेम कहानी के रूप में सबके सामने लाता है तब कोई मराठा इसके विरोध में नही आया और आज जो फ़िल्म किसी ने देखी ही नही उसे लेकर भारत भर में राजपूतों सहित सभी जातियों ने तहलका मचा रखा है।फ़िल्म के निर्देशक अपनी फ़िल्म की पब्लिसिटी के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ये बात न जनता ने समझी और न ही सरकार ने।जहाँ सरकार ने सेंसर बोर्ड को मनोरंजन और फ़िल्म क्षेत्र के सारे अधिकार दे रखे है वह सेंसर बोर्ड गंभीर परिस्तिथियाँ उत्पन्न होने तक कोई कदम नही उठा सका।सेंसर बोर्ड यदि स्तिथि बिगड़ती देख पहले ही फ़िल्म को देख कर सब कुछ स्पष्ट कर देता तो आज ऐसी परितिथियाँ उत्पन्न नही होती।दूसरी ओर फिल्म कुछ पत्रकारों को दिखा दी गयी और सेंसर बोर्ड को ठेंगा दिखा दिया गया।वही भविष्य में होने वाले दंगों को रोकने के लिए एक एक करके राज्यो में फ़िल्म बैन कर दी जा रही है। यहीं नही रानी पद्मावती को राष्ट्रमाता का दर्जा तक दे दिया गया। क्या ये जरूरी था?? जहाँ राष्ट्रपिता के हत्यारे का मंदिर बन गया वहां राजपुताना रानी को राष्ट्रमाता बना देना किसी कायरता से कम नही है।आधुनिकता और कुटिलता कुछ इस तरह बढ़ती जा रही है की लोग अपने देश के महापुरुषो का सम्मान करना तक भूल गए।कुछ लोग भारत के राष्ट्रपिता कहलाने वाले महात्मा गांधी का अपमान करने से बाज नही आते है।आये दिन लोग मंच पर खड़े होकर बापू को अपशब्द कहते है।आज सभी को रानी पद्मावती के सम्मान की फिक्र है लेकिन इस देश की बेटियों की फ़िक्र किसी को नही है।हर साल 34000 लड़कियो की इज़्ज़त तार तार होती है।हैवानियत का नाच होता है।लेकिन तब कोई आगे नही आता।रानी पद्मावती यदि राष्ट्रमाता है तो देश की बेटियां उनका गुरुर क्यों नही है।क्यों हर रोज़ पुरुषों के पैरों तले कुचली जाती है,क्यों अंगारों से दागी जाती है,क्यों उसे पैदा होते ही मार डालते है,क्यों उसे नाली में सड़ने फेक देते है,क्यों उसका सौदा करते है,क्यों उसका बलात्कार करते है?? एक फ़िल्म का बनना इतिहास से छेड़छाड़ है,वह इतिहास जिसे आज तक किसी ने जानने की कोशिश ही नही की। बिना जाने,बिना फ़िल्म देखे एक लड़की की नाक काटने का ऐलान कर दिया वो भी मंच पर।ये है हमारा अभिव्यक्ति का अधिकार।जो हमे छूट देता है अपनी राय लोगो के सामने रखने की।लेकिन अभिव्यक्ति का अधिकार दंगा मचाने,धमकियाँ देने,हिंसा फ़ैलाने और धार्मिक भावनाये भड़काने की इज़ाज़त नही देता है।तो अच्छा यही होगा की लोग अपना अपना मत शांति पूर्वक दें और फ़िल्म से सम्बंधित सभी निर्णय सेंसर बोर्ड को लेने दे।जिस काम के लिए सेंसर बोर्ड को बनाया गया है वह काम उसे करने दे।आखिर कब हम जातियों से ऊपर उठ कर भारतीय बनेंगे।वो भारतीय जो किसी जाति का नही होता बल्कि अपने भारत देश का होता है।तो फिर सबसे पहले भारतीय बनिए और अपने भारत की गरिमा और शांति को बचाइये।
- शिवांगी पुरोहित

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