समाज के साथ बदलती वर्ण व्यवस्था

वैदिक काल से ही समाज 4 वर्णों  में विभाजित था : ब्राह्मण, राजन्य या क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र |
• प्रत्येक वर्ण का अपना कार्य निर्धारित था जिसे वे पूरे रीति रिवाज के साथ करते थे | हर एक को जन्म से ही वर्ण दे दिया जाता था |
• गुरुओं के 16 वर्गों मे से एक ब्राह्मण होते थे परंतु बाद में दूसरे संत दलों से भी श्रेष्ठ हो जाते थे | इन्हे सभी वर्गों में सबसे शुद्ध माना जाता था और ये लोग अपने तथा दूसरों के लिए बलिदान जैसी क्रियाएँ  करते थे |
• क्षत्रिय शासकों और राजाओं के वर्ग में आते थे और उनका कार्य लोगों की रक्षा करना और साथ ही साथ समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखना होता था |
• वैश्य लोग आम लोग होते थे जो व्यापार, खेतीबाड़ी और पशु पालना इत्यादि का कार्य करते थे | मुख्यतः यही लोग कर अदा करते थे |
• यद्यपि सभी तीनों वर्णों को उच्च स्थान मिला था और ये सभी पवित्र धागे को धारण कर सकते थे, पर शूद्रों को ये सभी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं और इनसे भेदभाव किया जाता था |
• पैतृक धन पित्रसत्तात्मक का नियम था जैसे चल अचल संपत्ति पिता से बेटे को चली जाती थी | औरतों को ज़्यादातर निचला स्थान दिया जाता था | लोगों ने गोत्र असवारन विवाह का चलन चलाया |एक ही गोत्र के या एक ही पूर्वजों के लोग आपस में विवाह नहीं कर सकते थे |
वैदिक काल से ऐसा ही चला आ रहा है लेकिन अब शुद्रो की यह मांग बढ़ती जा रही है की उन्हें ब्राम्हण का दर्जा दे दिया जाना चाहिए। वैदिक काल की वर्ण व्यवस्था लोगो के कार्य विभाजन के आधार पर तय की गयी थी जिन लोगो को जो काम आता था वे वही काम करते थे और वही उनका व्यवसाय बन जाता था।उनके पूर्वज जो काम करते थे वही उनकी आने वाली पीढियां करती थी। लेकिन अब शुद्रो को आरक्षण मिल जाने पर उन्हें विशेष् समाज के रूप में जाना जाने लगा है। उनमे अहंकार जाग गया है। सरकार के द्वारा उन्हें इतनी ज्यादा तवज़्ज़ो मिलनेे के कारण उनमे यह गुरुर हो गया है की वे आरक्षित वर्ग से है और यदि उनसे ये कहा जाय की वे अपना आरक्षण छोड़ दे तो वे केवल अपने स्वार्थ को देखते है वे अपना आरक्षण छोड़ने को तैयार ही नही है। वे हवाला देते है हिन्दू वर्ण व्यवस्था का,की उनके साथ आदि काल से भेदभाव होता आ रहा है उन्हें मंदिरो में अब भी नही आने दिया जाता। लेकिन ये तथ्य ही गलत है बडे बड़े पवित्र मंदिरो और तीर्थ स्थलो में शुद्रो से आधार कार्ड थोड़ी माँगा जाता है या फिर किसी भी वर्ग के व्यक्ति की पहचान नही पूछी जाती है भगवन के लिए सब एक बराबर होते है उनके दरबार में कोई निम्न या उच्च नही होता है।लेकिन बदलते समाज ने लोगो की मानसिकता को ख़राब करके रख दिया है। लोग दुसरो का हक़ छीनने से पीछे नही हट रहे है और सरकार भी यह नही समझ पा रही है की आरक्षण का हल कैसे निकाले। सरकार को आर्थिक आधार पर आरक्षण देना चाहिए जो की उचित है लेकिन यह भी जरुरी नही है की शुद्र ही हमेशा गरीब होते है बल्कि हर वर्ग के लोगो में निर्धनता होती है । आज सरकार ने जाति के नाम पर दलितों को इतना कुछ दे रखा है की एयर कंडिसनर वाले पक्के मकान में बैठ कर भी दलित ऐसा कहते है की वे शोषित है।  बल्कि शोषित तो वे लोग है जो गरीब भी है और अनारक्षित वर्ग से भी है। जिन्हें सरकार कुछ नही देती न शिक्षा के क्षेत्र में न ही रोजगार के क्षेत्र में। आखिर जाति के नाम पर ये भेदभाव कब ख़त्म होगा।
- शिवांगी पुरोहित

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