कन्या भोज

शक्ति की प्रति रूपा नारी जो समाज को आधार प्रदान करती है नवीन प्रकृति का निर्माण करती है इसके छोटे प्रतिरूप को नवरात्रि में कन्या भोज करा कर पूजा जाता है क्या कन्या भोज कराना केवल दिखावा है या सम्मान की वास्तविकता और अगर केवल दिखावा या छलावा है तो बंद हो जाने चाहिए शुभ कार्यों में कन्या भोज क्योंकि शुभ कार्यों की सफलता वास्तविकता से है मिथ्या तर्कों से नहीं मेरा प्रस्तुत श्रद्धा वान समाज से है जो नवरात्रि के समय शक्ति की पूजा अर्चना बढ़-चढ़कर करती है और अपने घरों में कन्या भोज कराती है क्या मां के गर्भ में आने वाली बेटी को कन्या भोज का हिस्सा बनाने में डर लगता है क्या उसे बगैर दुनिया में लाए ही मिटा देना श्रद्धा है क्या इस कन्या की कन्या भोज में आवश्यकता नहीं क्या घर में इसकी कोई श्रद्धा युक्त जगह नहीं जो कन्या भोज साल में दो बार कराए जाते हैं क्या इसका प्रतिदिन कराया जाना उचित नहीं क्या कन्या का वास्तविक अस्तित्व  आप को खलता है उन्हें समाज में आने से मत रोको वरना कन्या भोज अधूरा का अधूरा ही रह जाएगा आज कन्या भोज कराने के दिखावे के लिए इतना भटकना पड़ रहा है अरे समाज को दूषित बनाने वालों दिखावे के लिए अन्य घरों की कन्या को प्रोत्साहन ना देकर अपने घर वाले भी कन्या को सम्मान दें अस्तित्व में आने दो इससे समाज का संतुलन भी बना रहे और आप भी धन्य हो जाओगे क्योंकि एक बेटी कई भूमिकाओं का संचालन करते हुए नवीन अंकुर स्फुट कराती है नवीन शक्ति का निर्माण करती है यह केवल कन्याभोज के नहीं बल्कि हर रिश्ते के काम आती है भारत में स्त्री पुरुष अनुपात 1000:943 है कहीं ना कहीं इसका कारण कन्या भ्रूण हत्या ही है इसलिए जागिए और वास्तविकता से नाता जोड़ो दिखावे से नहीं।
- सोनम पाठक (कटनी मप्र)

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