देश के लिए कुछ करोगे??
ये 'वीर सपूत' जैसा ऐतिहासिक सा लगने वाला शब्द अब केवल सरहद पर अपनी जान देने वाले भारतीय जवानो के लिए उपयोग किया जा सकता है। क्योंकि वे ही वीर सपूत कहलाने लायक बचे है और हम भारत के युवा, जिनमे न भगत सिंह जैसी देश भक्ति है, न आजाद जैसी वीरता और न ही सुभाषचंद्र जैसा जोश। हमने देश की रक्षा और व्यवस्था का ठेका सरकार को दे रखा है। जब सरकार अपना काम ठीक से नही करती है तो हम सरकार को बुरा भला कहकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेते है। लेकिन हम जाति के नाम पर क्यों लड़ रहे है। जो बचपन में साथ खेला करते थे आज एक दूसरे के खिलाफ सड़को पर उतर रहे है,आपस में पथराव कर रहे है और एक दुसरे की हत्या कर रहे है और लड़ने के कारण भी बहुत बड़े बड़े होते है- जिन्ना की तस्वीर और पद्मावती की कमर। जाति के नाम पर तो रोजाना लड़ते है,कहीं भी कभी भी।हम भारत का वर्तमान भी है और भविष्य भी, लेकिन भारत के अतीत से सीखने की बजाये हम पूर्वजो के शोषण पर लड़ रहे है। ये सब मत कीजिये... कुछ करना है तो इस देश के लिए कीजिये। युवा वर्ग का अक्सर एक सवाल होता है की हम तो अभी अपने पैरो पर खड़े भी नही हुए है हम भला देश के लिए क्या कर सकते है? तो मेरे पास इस सवाल का जबाब है की हमारे छोटे छोटे प्रयास और अच्छी आदते देश में सही बदलाव ला सकते है। क्या आप जानते है? भारत में हर साल कई राज्य सूखे की मार झेलते है जहाँ लोग एक एक बूँद पानी के लिए तरस जाते है , कुछ तो प्यास के मारे मर भी जाते है और इसका सबसे बड़ा कारण है देश में दिन ब दिन हरियाली का कम होना।
क्यों न एक नयी पहल शुरू की जाय। हर हफ्ते किसी भी जगह एक पौधा रोपा जाये। हम सोचते है की पौधे लगाना बहुत उबाऊ काम है लेकिन एक बार करके तो देखिये। जब वो पौधा धीरे धीरे बड़ा होगा तो आपको कितना अच्छा लगेगा। जब वो पौधा एक पेड़ बन जायेगा तो आपको वो सुख मिलेगा जिसकी आपने पौधा रोपने से पहले कल्पना भी न की होगी।
- शिवांगी पुरोहित
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