एक स्त्री ये भी है

संघर्ष,पीड़ा और स्वाभिमान एक औरत की ज़िन्दगी के अभिन्न अंग होते है।साथ ही साथ रिश्तों के दायरे अक्सर उसको चूर चूर कर देते है।ऐसे रिश्ते जिनसे उसका वजूद हो।बिना उन रिश्तों के उसकी कोई औकात न हो। लेकिन वो चीख नही सकती,अपना दर्द अपनी वाणी से बाहर नही कर सकती।नियति ने उसे चुप रहने के लिए बनाया है,सहने के लिए बनाया है। वाह रे भगवान् क्या दुनिया बनाई है तूने।यहाँ चीत्कारें यदि पुरुष की हों तो आसमान भी उठा ले।लेकिन एक औरत की चीत्कार को जबान के बहार जाने की इज़ाज़त नही है।वो चीत्कार हमेशा कलेजे के अंदर दबी रहती है और आग की तरह धधकती रहती है।लेकिन जब संसार की जननी मुट्ठी भर पापियों से त्रस्ट होकर कुंठित होकर "मैं" को चुनती है तब वो चीत्कार बहार निकलती है और उस चीत्कार को दबाने का एक ही तरीका होता है कि उसके चरित्र पर ऊँगली उठा दो।यहाँ आकर भाई बहन, बाप बेटी,पति पत्नी जैसा रिश्ता कोई मायने नही रखता।ये रिश्ते जितने करीबी होते है उतना ही दर्द दे जाते है।फिर एक राज खुला की वो आत्महत्या क्यों करती है।वो अपना संसार बसाती है और बार बार खुद को मारती है।आखिर क्यों? वो समझ गयी क्योंकि उसंने वो महसूस कर लिया।उसने वो सब सह लिया जिसके कारण हर बार वो अपने बच्चों को अकेला छोड़ कर आत्महत्या करती थी।लेकिन आज उसके पास दो रास्ते है पहला ये कि कुछ ऐसा गाना गुनगुनाय "अच्छा चलती हूँ,दुआओ में याद रखना,मेरे ज़िक्र का जुबां पे स्वाद रखना,दिल के संदूकों में मेरे अच्छे काम रखना,चिट्ठी-तारों में भी मेरा तुम सलाम रखना" और फिर संसार को अलविदा कहदे,अपने परिवार को अकेला छोड़ दे।मतलब पुनः आत्महत्या कर ले। दूसरा रास्ता कहता है कि कुछ ऐसा गाना गुनगुनाये "जो भी तूने किया है, वो वैरी वैरी राईट है,भूतकाल को भूल जा अब तो,आने वाला फ्यूचर वैरी वैरी ब्राइट है।" और फिर अपने संघर्ष को जारी रखते हुए जिंदगी के खुशनुमा पहलुओं को पीछे मुड़कर देखे।यह देखे कि वो रिश्ता नारियल कि तरह है जो अंदर से नरम है।वो एक ऐसी पर्सनालिटी है जो नशे में तिलमिला उठती है और होश में अंदर ही अंदर प्यार करती है लेकिन कभी जताती नही है।एक स्त्री जो अक्सर प्रताड़ना सह सह कर थक जाती है और आत्महत्या कर लेती है। यदि वो आवाज़ उठाती है तो उसे मार दिया जाता है। ये एक आइना है इस समाज का। एक बार को यदि पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ती अधनंगी बालाओं से नजर हटाकर। अपने ही घर में कैद रोटी बेलती,गाली खाती उस स्त्री के बारे में सोचें तो अख़बार की वो खबरें हमारी आखों के सामने गुजर जाती है और फिर हमें ध्यान आता है हमारे आस पास भी तो यही हो रहा है हमेशा से।
- शिवांगी पुरोहित

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रम की आवश्यकता क्यों??

my 1st blog

माय लाइफ माय चॉइस