शिक्षक भर्ती में बंद हो आरक्षण


सही है कि आरक्षण गरीबी हटाओ अभियान नहीं है लेकिन आर्थिक आरक्षण भी देश की गरीबी हटाने में तब तक कामयाब नहीं होगा जब तक भारत की शिक्षा व्यवस्था नहीं सुधर जाती भारत की सरकारी स्कूलों में माइनस मार्क्स वाले शिक्षकों की भर्ती सिर्फ आरक्षण का कोटा पूरा करने के लिए कर दी जाती है और जब ऐसे शिक्षक उन गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं तो वह आठवीं तक ही जबरदस्ती पास किए जाते हैं और 9वीं में आकर फेल हो जाते हैं फिर उन्हें भी अपने माता-पिता की तरह ₹200 दिन मजदूरी करनी पड़ती है। इसलिए आरक्षण चाहे आर्थिक हो या जातिगत इसे शिक्षक भर्ती में पूरे देश में बैन कर देना चाहिए जिससे कोई गरीब का बच्चा आगे तक पढ़ सके। जब यह बच्चे अच्छे तथा गुणी शिक्षकों से पढ़ेंगे तो यह भी होनहार बनेंगे और आगे तक पढ़ सकेंगे।
यहां शिक्षकों पर प्रश्न उठाना लाजमी है। आइए एक मामला आपको बताती हूं- मध्यप्रदेश के सिंगरौली में एक महिला शिक्षक कलेक्टर के पास अपना तबादला करवाने हेतु आवेदन लेकर आई थी जब कलेक्टर ने उनके ज्ञान की जांच करने के लिए उन्हें अंग्रेजी में ONE और TWOकी स्पेलिंग लिखने को कहा तो महिला शिक्षक ने लिखा ONA और TOT फिर कलेक्टर ने उनसे हिंदी में मध्यप्रदेश और अध्यापक लिखने को कहा तब हिंदी में भी शब्द गलत लिखे। अब जरा सोचिए कि प्राइमरी स्कूल के बच्चों को शब्द ज्ञान सिखाने में असमर्थ शिक्षक हमारी शिक्षा व्यवस्था के साथ कैसे खिलवाड़ कर रहे हैं जो शिक्षिका ONE और TWO की स्पेलिंग सही नहीं लिख सकती वह भर्ती परीक्षा में माइनस मार्क्स ही लाई होगी। इसलिए भारत सरकार को इस बारे में विचार कर शिक्षक भर्ती में आरक्षण पूर्णत: हटाना होगा।
राज्यसभा एवं योजना आयोग के पूर्व सदस्य डॉ भालचंद्र मुणगेकर ने यूनिवर्सिटियों में आरक्षण को विभागीय स्तर पर लागू करने पर अपनी कई प्रतिक्रियाएं दी। उन्होंने मराठी में एक लेख लिखा जो लोकमत दैनिक समाचार में प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखकर कहा कि “
“यह जो यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन और आरक्षण का निर्णय करने वाले हैं, उनका निर्णय पास नहीं होना चाहिए और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी चाहिए और तब तक इस फैसले को लागू नहीं किया जाना चाहिए”। साथ ही उस पत्र के अतिरिक्त अलग से एक पत्र पूरा दिन लगाकर लिखा और इसमें 30 सांसदों के हस्ताक्षर हैं। डॉ भालचंद्र मुणगेकर मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे हैं।
डॉ मुणगेकर को चिंता इस बात की है कि यूनिवर्सिटी में विभागीय स्तर पर नियुक्तियां होने से SC ST को कोई पद नहीं दिया जाएगा क्योंकि एक विभाग में 7 से 8 पद होते हैं उनमें वर्ग अनुरूप पद कैसे बांटे जाएंगे आखिर हर बार शिक्षित SC ST की चिंता क्यों की जाती है। क्यों 10% लोगों को ही बार-बार आरक्षण दिया जाता है। कॉलेज एडमिशन में आरक्षण, फिर नेट पास करने में आरक्षण, फिर प्रोफेसर भर्ती में भी आरक्षण और पदोन्नति में भी आरक्षण। आखिर इतने बड़े-बड़े लोग केवल उच्च स्तर के बारे में क्यों सोचते हैं? क्या किसी ने प्रधानमंत्री को उन ग्रामीण बस्तियों में रहने वाले, गंदगी साफ करने वाले, गटर में डुबकी लगाने वाले दलितों के लिए पत्र लिखा? नहीं! शिक्षित, सक्षम लोगों को आरक्षण की बैसाखी पकड़ाने प्रत्येक नेता, महापुरुष, विद्वान खड़े रहते हैं। उन दलितSC ST वालों का क्या जिन्होंने यूनिवर्सिटी की शक्ल भी नहीं देखी। उन्हें तो 8 वीं के बाद स्कूल जाने ही नहीं मिलता और आपके चित्त में केवल10% लोग रहते है जो बार-बार आरक्षण प्राप्त करते हैं। क्या भारत देश में प्रतिभा का कोई मोल नहीं बचा? प्रतिभा को गालियां बकने वाले लोग क्या यह जानते हैं कि विश्व में शिक्षा के क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बाद भारत का स्थान होने के बाद भी विश्व के शीर्ष 200विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। इसका कारण जानते हैं आप? भारत के विश्वविद्यालयों में आरक्षण के कारण रीडर लेक्चरर और प्रोफेसर के पदों के लिए SC ST का कोटा पूरा करने के लिए कम से कम अंक वालों को भी नियुक्त कर दिया जाता है।
आइए उदाहरण देती हूं- उत्तराखंड लोक सेवा आयोग द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर राजकीय महाविद्यालय की दिनांक 29 अक्टूबर 2017को संपन्न परीक्षा का कट ऑफ न्यूनतम सामान्य वर्ग का 179, OBC का 148, SP का 78 औरSC का  51.50 रहा। अब सोचिए 52 अंक लाने वाला असिस्टेंट प्रोफेसर बन जाता है और178 अंक लाने वाले को विफल कर दिया जाता है यही हालात देश के सभी विश्वविद्यालयों के हैं जिसके कारण अब विश्वविद्यालय आरक्षण व्यवस्था से त्रस्त हो चुके हैं। उनके विश्वविद्यालयों में शिक्षा का स्तर लगातार घटता जा रहा है क्योंकि उन्होंने ऐसे प्रोफेसर भर रखे हैं जो 52 अंक लाकर प्रोफेसर बन जाते हैं। इससे त्रस्त होकर विश्वविद्यालय आरक्षण व्यवस्था के विरुद्ध जाने लगे हैं।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय ने8 अप्रैल 2018 को प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्तियां निकाली है, वह भी सिर्फ अनारक्षित वर्ग के लिए। हिमाचल लोक सेवा आयोग ने सहायक प्रोफेसर पद के लिए 95%नियुक्तियां सामान्य वर्ग से निकाली। यह उदाहरण हमें बताते हैं कि विश्वविद्यालय यह करने को मजबूर हो गए हैं क्योंकि अभी तक विश्वविद्यालय में प्रवेश और नियुक्तियों को लेकर माइनस मार्क्स वालों को तक पक्ष में रखा जाता रहा है।
राजस्थान लोक सेवा आयोग की शिक्षक भर्ती परीक्षा में फिजिक्स में -0.68 लाने वाली stमहिला का चयन किया गया। अगस्त 2017 में दिल्ली विश्वविद्यालय में शून्य अंक वाले SC STछात्रों को गणित विभाग में पीएचडी प्रवेश के लिए पात्र कर दिया था। प्रवेश परीक्षा में शून्य अंक लाने वाले SC ST अभ्यर्थियों को पीएचडी के साक्षात्कार के लिए पात्र कर आरक्षण का अच्छा नमूना पेश किया गया। इस वर्ष 2018 में जेईई मेंस का कटऑफ सामान्य वर्ग 74, पिछड़ा वर्ग 45, sc 29, और st 24 रहा अर्थात सामान्य वर्ग का अभागा छात्र 73 नंबर लाकर भी इंजीनियर नहीं बन पा रहा और 24 अंक लाने वाले बेहतरीन संस्थानों में प्रवेश पा रहे हैं,हालाँकि क्या गारंटी है कि 24 अंक लाने वाला गरीब है। यदि वह जेईई मेंस में 24 अंक लाकर सेलेक्ट होता है तो कल्पना कीजिए 72 अंक लाने वाला सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी पकौड़े बेचने लायक ही है।
ऐसे कई उदाहरण है जो आए दिन अखबारों में छपते हैं। लोग चाय की चुस्की लेते हुए खबर पढ़ते हैं और भूल जाते हैं। एक अखबार में छपी खबर के अनुसार RPSC की ग्रेड सेकंड शिक्षक भर्ती में 11 अंक लाने वालों के शिक्षक बनने के बाद, ग्रेड थर्ड शिक्षक भर्ती 2006 के रिजल्ट मेंST पुरुष का कटऑफ - 8 और महिलाओं का – 9.33 अंक रहा और जनरल का कटऑफ200 में से 106 अंक रहा और इससे पहले भी सेकंड ग्रेड परीक्षा में 500 में से 11 अंक लाने वालों को शिक्षक बनाया गया। पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार 6% अंक लाने वाली महिला हेड मास्टर बनी और 61 प्रतिशत वाले फेल कर दिए गए। इसी अखबार की 15 जून 2014 की खबर के अनुसार राज्य लोक सेवा आयोग ने राज्यसेवा व अधीनस्थ सेवा परीक्षा 2013 का परिणाम घोषित किया जिसमें 0 अंक प्राप्त करने वाले परीक्षार्थी का चयन साक्षात्कार के लिए किया गया और 300 से अधिक अंक लाने वाले सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी को साक्षात्कार के लिए अयोग्य ठहराया गया।
आरक्षण ही है जो शिक्षा व्यवस्था का नाश कर रहा है। क्योकि ऐसे शिक्षकों की भर्ती की जा रही है जो खुद माइनस मार्क्स लाते है।यदि भारत के आने वाले कल को सुधारना है तो शिक्षक भर्ती में आरक्षण खत्म करना ही होगा।
 - shivangi purohit
उक्त लेख शिवांगी पुरोहित की किताब "आरक्षण : 70 साल" से लिया है।

Comments

  1. आपने यह समस्या तो बता दी और यह समस्या सभी को पता है , यह राजस्थान शिक्षक भर्ती की परीक्षाएँ मेरी आँखों के आगे से गुजरी हैं और सही ही है कि माइनस अंक लाकर भी शिक्षक बब जाते है पर इसका समाधान नहीं बताया आपने???

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