आस्था???

यदि बात करे लाखो वर्ष पहले की तो जान पड़ता है की भगवान का नेटवर्क कभी कवरेज क्षेत्र के बहार नही होता था। भगवान इतनी फुरसत से बैठ के अपने भक्तो की परीक्षा लिया करते थे।एक भगवान पर्वत पे बैठे , एक शेषनाग पर और एक कमल के फूल पर। जब भक्तो की परीक्षा पूरी हो जाती थी तो भगवान अपने अपने स्थान से उठकर आते और भक्तो को वरदान दे के तथास्तु बोलकर गायब हो जाते थे।
अब बात करे आज के समय की तो ये कहानिया हमे टीवी के धारावाहिको में देखने को मिलती है। अब सोचने की बात ये है की वो भगवान आखिर गए कहाँ।
हम भी तो रोज़ नयी नयी परीक्षाए दे रहे है। मनुष्य की कठिनाईयो का कोई अंत है ही नही। फिर भगवन हमे दर्शन क्यों नही देते। पहले तो राक्षस से लेके साधू संत तक 1 टाँग पे खड़े होकर कई वर्ष बर्बाद कर देते थे और वरदान में लंबी आयु की मांग करते थे।
हिंदी साहित्य में निर्गुण ब्रम्ह का उल्लेख किया गया है।मतलब की भगवान का कोई आकर प्रकार नही होता था। लेकिन आज कल के भक्तो ने धारावाहिक देख देख के नायक की छवि को ही भगवन मान लिया है। अब भक्त शिवजी को याद करते ह तो आखो के सामने महादेव के रूप में मोहित रैना की छवि दिखाई देती है।
अब ये ज़रूरी नही की आज के युग में सभी भगवन को मानते है या उनके प्रति भरी पूरी औपचारिक्ताओ के साथ भक्ति भाव रखते है। बेशक कई व्यक्ति भगवन में श्रद्धा नही रखते लेकिन अपने आप को आस्तिक बताने से भी पीछे नही हटते।
भगवान् है इस बात से कोई मुकर नही सकता लेकिन हिन्दू धर्म में भगवन के नाम से व्याप्त कुछ कुरीतिया कहा से उत्पन हुई इस बात का कोई प्रमाण नही मिलता है।
पहले तो कुछ गिने चुने भगवन ही जाने पहचाने जाते थे जिनका प्राचीन पुराणों वेदों और कथाओ में उल्लेख होता है।लेकिन आज देखा जाये तो न जाने कहा से इतने सारे भगवन उत्पन्न हो गए है की बेचारे भक्त ही असमंजस में है की किसकी पूजा करे।किसके प्रति मन में भक्ति भाव उत्पन्न करे।
लेकिन 1 कटु सत्य यह भी है की हमारे चाहने से हम भगवान की और आकर्षित नही हो सकते न ही हम किसी ईश्वर विशेष् के प्रति भक्ति भाव जगा सकते है।
इसलिये मानना यह है की धर्म करने से भगवान से मांगना पड़ता है  लेकिन कर्म करने से भगवन को  खुद देना पड़ता है।
इसीलिए माँगना भले ही मत छोड़ो लेकिन कर्म करना तो शुरू करो।

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