ये मात्र जीव नही है

पिछले 2 साल से सोशल मीडिया पर एक बूचड़खाने का वीडियो वायरल हो रहा है जिसमे गायो को लटका कर धारदार औजार से उनकी हत्या की जा रही है।इस वीडियो के साथ भारी भरकम शब्दों में एक अपील की जाती है कि " यदि आप सच्चे हिन्दू हैं तो इस वीडियो को इतना शेयर कीजिये कि गौ माता की हत्या करने वालों को कठोर सजा मिल सके।" वाह!बड़ी अजीब मानसिकता है। क्या सोशल मीडिया पर ये वीडियो वायरल करने से गौहत्या बंद हो जायेगी। पहले हम अपने आप को तो सुधार लें। अपने आप को हिन्दू कहने वाले लोग,गाय को माता कहने वाले लोग स्वयं उस गाय का मांस बड़े चाव से खाते है और उस मांस के लिए राजनैतिक व सामाजिक रूप से लड़ते भी है।तो क्यों ये दिखावा करते हो कि तुम्हे उस गाय की चिंता है।हिन्दू धर्म में यह मान्यता है की गाय में 33 करोड़ देवता निवास करते है।अब इस मान्यता को वामपंथी विचारधारा के लोग यदि अंधविश्वास समझे तो समझते रहे लेकिन ये उन लोगो की आस्था है जो गाय को पालते है उसके साथ रहते है उसे भरपूर प्यार करते है वो भी एक परिवार के सदस्य की तरह।हर गांव,हर शहर में सैकड़ो गाय असहाय घूमती रहती है और आये दिन किसी वाहन के नीचे आकर मर जाती है। लोग गाय को तब तक अपने पास रखते है जब तक वो उनके काम की होती है।जब गाय बूढ़ी हो जाती है या दूध देना बंद कर देती है तो उसे कुछ स्वार्थी लोग  बेघर कर देते है।सरकार कितनी भी गौशालाएं बना ले पर जब तक हम सभी नागरिक इस मामले में संवेदनशील नही होंगे तब तक ऐसा ही होता रहेगा। कई लोग इस विषय को मजाक में लेते है और गाय को एक जानवर मात्र मानते है लेकिन उन लोगों के लिए गाय का बहुत महत्त्व है जो उसमे आस्था रखते है।साथ ही गाय की हत्या और मांस के विक्रय के सम्बन्ध में लोग अन्य धर्मो के लोगों की बातें करते है तो ये एक अधूरा सत्य है गाय को मारने वाले किसी धर्म विशेष के नही होते ये कार्य तो सभी करते है।लेकिन यदि उस गाय को हमने माँ का दर्ज दिया है तो उसकी रक्षा करने का धर्म भी हमारा ही है।इसीलिए सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल कर देने भर से हमारा कर्तव्य पूरा नही हो जाता।एक मध्यम वर्गीय परिवार भी लाखो रूपये खर्च कर कुत्ता पालता है।लेकिन क्या वो कुत्ता उन्हें वो सुविधाएं दे सकता है जो एक गाय देती है।एक गाय एक गरीब की आजीविका का साधन बन सकती है जो एक कुत्ता नही बन सकता।कुत्तो के प्रेमी इस बात को अन्यथा न ले।प्रत्येक जीव हमारे लिए उपयोगी है।लेकिन आस्था भी कोई चीज़ है।भारत की 68% आबादी  गाँवों में निवास करती है और गाँव भारत की संस्कृति के स्तम्भ है।यहाँ आज भी गाय के गोबर का भरपूर इस्तेमाल होता है।जिन्हें देख शहरी और वामपंथी विचारधारा के लोग नाक भौं सिकोड़ते है।अब इस स्थान पर कई बुद्धिजीवी भैंस का जिक्र करेंगे।लेकिन यहां बात संस्कृति की है।संस्कृति को केवल कहकर मानने से काम नही चलेगा। संस्कृति को अपनाने तथा उसकी रक्षा करना ही एक मात्र रास्ता है।कुछ चीज़े ऐसी होती है जिनमें तथ्य नही भावनाएं छुपी होती है।इसीलिए हर चीज़ में तथ्य को ढूँढना बंद कीजिये और आस्था और संस्कृति को बचाने का प्रयास कीजिये।
- शिवांगी पुरोहित

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