भगवान के मंदिर में भी लिंगभेद

भगवान ने जब हम सभी को एक जैसा बनाया है तो भगवान के मंदिर में ये भेदभाव क्यों? भारत के कई मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। आखिर महिलाओं को इतना तुच्छ क्यों समझा जाता है। ये सारी रीतियाँ आखिर बनाई किसने हैं? क्या भगवान खुद आये थे ये कहने की मेरे मंदिर में सिर्फ पुरुष ही जा सकते हैं। ये सारे घटिया रिवाज इस दोगले समाज ने बनाएं है। एक तरफ कामाख्या देवी के रजस्वला रक्त को प्रसाद में ले जाते है दूसरी तरफ महिलाओं को अपवित्रता के नाम पर मंदिरों में नही जाने देतें।
28 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने केरल के शबरीमाला अय्यप्पा मंदिर मे महिलाओं का प्रवेश निषेध हटा दिया। जिसे मंदिर बोर्ड ने स्वीकार कर लिया। यहां तक कि राजपरिवार की बैठक में भी मंदिर बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ न जाने की बात कही। लेकिन वही स्थानीय लोग और राजनैतिक पार्टियां सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ आ गयी। अब तो ये एक तमाशा बन गया है कि सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले को नही मानना है। आश्चर्य की बात तो ये है कि 10 दिन से जो लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं उनमे महिलाएं भी शामिल हैं। यही नही ये महिलायें शबरीमाला की तरफ आने वाले वाहनों को रोक रोक कर लड़कियों और औरतों को वापस भेज रही है। साथ ही महिला पत्रकारो को तक वापस भगाया जा रहा है। इन महिलाओं को इस बात पर जरा भी शर्म नही कि खुद महिला होकर वे महिलाओं को भगवान् के मंदिर में आने से रोक रही है। अपनी राजनैतिक और संगठन की रोटियां सेंकने के चक्कर में अपने नारी स्वाभिमान को लात मार रही है। ये महिलायें विरोधी के रूप में खुद का ही विरोध कर रही है खुद को ही अपवित्र कर रही है इससे बड़ी बेवकूफी भला क्या होगी। जहाँ शोषण के विरोध में खड़े होने की बात आती है तो ये महिलाएं शायद ही आगे आती हों या विरोध प्रदर्शन करती हों। लेकिन आज जब राजनैतिक से लेकर संगठनवादी सभी लोग महिलाओं के अयप्पा मंदिर में प्रवेश को लेकर विरोध में है तो ये महिलायें भी उनके साथ शामिल हो गयी। राजनीती और संगठन वादिता में इतना भी अँधा न हो जाये इंसान कि अपने ही अस्तित्व से दगाबाजी कर ले। विरोध हर चीज का होता है चाहे वह जायज को या नाजायज लेकिन हर व्यक्ति अपने अस्तित्व अपने आधार और अपने समुदाय के साथ खड़ा रहता है। sc st कानून में बदलाव के विरोध में सारे हरिजन और दलित एक साथ खड़े थे लेकिनाज जब महिलाओं पर लगी एक पाबन्दी हटा दी गयी तो राजनीती में अंधे इन लोगो को ये भी स्वीकार नही। भारत जैसे देश में जहाँ पिछले 9 दिनों कन्याभोजन और देवी पूजा का ढोंग रचा जा रहा था वहीं दूसरी तरफ ये ढोंगी लोग भगवान् के मंदिर में महिलाओं को नही जाने देना चाहते। वे नारी को अपवित्र समझते है जबकि अपवित्र और खोटी तो उनकी सोच है। ये सिर्फ एक मंदिर की बात नही है हमे कई मंदिरों में बैन किया हुआ है हमे रोकने लोग तैनात किये जाते है, हम किसी पूजा में नारियल नही फोड़ सकते, हम शवयात्रा में शामिल नही हो सकत, हम मूर्ती स्थापना या विषर्जन नही कर सकते। ऐसी कई चीजे है जो हम नही कर सकते लेकिन पुरुष कर सकते है। ऐसा इसीलिए क्योंकि हम लड़कियां है। लोग कहते है की ये सब नियम भगवन ने बनाये है, नही! ये इंसानो। ने बनाये है, इस समाज ने बनाये है।पता नही कब तक ये चलेगा और लोगों की मानसिकता किस हद तक गिरेगी।
- शिवांगी पुरोहित

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