#metoo

फ़िल्मी दुनिया का एक कड़वा सच जो पूरी दुनिया जानती है कि यहां लड़कियों के साथ क्या क्या होता है और काम पाने के लिए उन्हें  क्या कुछ नही सहना पड़ता। इस बात को सभी जानते है लेकिन जब उन लड़कियों ने खुद सामने आकर metoo कहा तो आश्चर्य क्यों? नाम और शोहरत पाने के लिए न जाने कितने शोषण सहकर वो लड़कियां उचाईयों पर पहुँचती है लेकिन कभी किसी से कहती नही है कि उनका शरीरिक या मानसिक शोषण हुआ क्योकि वे जानती है कि आवाज उठाओगी तो सबसे पहले ये फ़िल्म इंडस्ट्री तुम पर ऊँगली उठाएगी। लेकिन metoo ने इस धारणा को ही बदल दिया। एक के बाद एक अभिनेत्रियों ने अपने साथ हुए शोषण को बया करना शुरू किया तो एक से एक दिग्गज चेहरे सामने आने लगे। शुरुआत नाना पाटेकर से हुई और साजिद खान तक आ गई। ये वे लोग है जिनका एक्टिंग और डायरेक्शन में एक बड़ा नाम है। जाहिर सी बात है इनके कई फैन भी है और इस नाते आरोप लगाने वाली लड़कियों पर भरसक ऊँगली उठाई जा रही है लेकिन देखने वाली बात ये है की उसी फ़िल्म इंडस्ट्री के दुसरे बड़े कलाकार इन पीड़िताओं के पक्ष में है। लेकिन कई लोगों का कहना है कि यूँ 10 साल बाद यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाकर कलाकारों को बदनाम किया जा रहा है। ये कैसे साबित होगा कि शोषण हुआ है या नही। यदि उस व्यक्ति ने कुछ किया ही नही होगा तो उसकी इज्जत तो वैसे ही मिटटी में मिल गयी। दूसरी ओर कुछ लोग तो ये भी कह रहे है कि जितनी भी लड़कीयाँ ये आरोप लगा रही है उनका फ़िल्म इंडस्ट्री में कोई नाम नही है। वे सिर्फ फेमस होने के लिए ऐसा कर रही है। मेरे पास जबाब है इन लोगों के लिए "ऐसा जरुरी नही है कि जिन लड़कियों का नाम है उनके साथ कभी कुछ नही हुआ होगा। वे आवाज इसीलिए नही उठा रही क्योकि वे डरती है इस बात से की जितनी मेहनत करके वहां तक पहुंची है वो सब चुकटी बजाते ही बर्बाद हो जायेगा। वो यदि स्टार बन चुकी हैं तो वे क्यों पीड़िता बनना चाहेगीं? जिन लड़कियों का नाम नही है उन्हें इस बात का डर नही है की उनकी कोई उपलब्धि ख़राब हो जायेगी।
metoo एक ऐसा जरिया है जो बिना किसी पुलिस कंप्लेंट के सहारे पूरी दुनिया को हमारी दास्ताँ बता देता है। दुनिया में ऐसी कोई लड़की नही होगी जो metoo न कहे। हमे metoo कहना सीखना होगा, जब भीड़ भरी बस में कोई हमे इधर उधर छुए, हमारा टीचर हमे नोट्स के बहाने स्टाफ रूम में बुला कर भद्दी बातें कहे, हमारा रिश्तेदार हमे अश्लील मेसेज कर परेशान करे, हमारा बॉस हमारे साथ जबरदस्ती करे और नोकरी से निकालने की धमकी दे, हमे बिना डरे metoo कहना होगा। डर किसका है परिवार का, बदनामी का या इस समाज का जिसने साड़ी पाबंदियां लड़कियों पर ही लगाई है। हमें कुछ मंदिरों में बैन किया हुआ है हमे रोकने लोग तैनात किये जाते है, हम किसी पूजा में नारियल नही फोड़ सकते, हमे हनुमान जी को छूने से उनके मंदिर जाने से मना किया जाता है, हम शवयात्रा में शामिल नही हो सकते। ऐसी कई चीजे है जो हम नही कर सकते लेकिन पुरुष कर सकते है। ऐसा इसीलिए क्योंकि हम लड़कियां है। लोग कहते है की ये सब नियम भगवन ने बनाये है, नही! ये इंसानो। ने बनाये है, इस समाज ने बनाये है। यदि इतनी पाबंदियां है हम पर तो हम क्यों न कहें metoo??  एक विदेशी महिला ने कुछ सालों पहले metoo हैशटैग के साथ अपने शोषण की कहानी बयां की और दुनिया की सारी महिलाओं का आवाहन किया कि आप भी अपने शोषण की कहानी खुल कर कहो। आज उस महिला की एक मुहीम ने न जाने कितने अपराधी चेहरों को सामने ला दिया। ये एक अच्छी पहल है और सभी को metoo का समर्थन करना चाहिए।

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