समझौता
बालकनी में सुबह की हल्की हल्की धूप आ रही थी। अनुराधा जी कुर्सी पर बैठी चाय पी रही थी और उनके पति साथ बैठकर चाय के साथ अख़बार पढ़ रहे थे। उनका बेटा और बहु दोनों अपने अपने टिफिन ले कर ऑफिस जा चुके थे और पोता राहुल भी स्कूल चला गया था।अनुराधा जी चाय खत्म करके उठी और रसोई में जाकर दोनों का खाना बनाने में जुट गयी। यह उनका रोज़ का काम था उन्हें अपना और पति का खाना स्वयं ही बनाना पड़ता था। अपनी उम्र के हिसाब से अनुराधा जी को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। दोनों का खाना बनाना और राहुल के स्कूल से आने पर उसकी देखभाल करना। कभी कभी बेटा और बहु ऑफिस से लेट आते तो शाम का खाना भी उन्हें भी बनाना पड़ता था। कई बार बहु बहाने से पति और बेटे के साथ पिक्चर देखने या होटल में खाना खाने चली जाती। कभी सास या ससुरजी से बाहर खाने पर जाने का आग्रह नही किया। यदि बेटा उन्हें साथ ले जाना भी चाहे तो भी पत्नी के डर से कह नही पाता था। अनुराधा जी इस सब का विरोध नही कर पाती थी क्योंकि उन्होंने अपनी ज़िन्दगी डर डर के ही बितायी थी। 16 की उम्र में ही उनकी शादी हो गयी थी। शादी के बाद जब वो गांव वाले घर में पहली बार आई थी तो सोचा करती थी कि सास से मैं नही डरूँगी । मैं क्यों किसी से डरूँ लेकिन सब इसके उलट ही हुआ। उनकी सास उन पर बात बात में चिल्लाती थी। चाहे उन्होंने कुछ गलत किया ही न हो। एक बार उन्होंने सास को जम कर सुना दिया। सास तेज थी देर न करते हुए अनुराधा जी को मायके भेज दिया और कहलवा दिया की ये हमारी बहु बनने लायक नही है।अनुराधा जी उस घर मे खुश नही थी उनको लगा कि उनका परिवार उनका साथ देगा लेकिन वो भूल गयी थी की वे इस घर के लिए परायी हो गयी है। घर वालो ने उन्हें रखने से इंकार कर दिया। फिर जैसे तैसे उन्होंने अपनी सास के पैर पड़े खूब गिड़गिड़ाई। तब कही जाकर उनकी सास ने उन्हें अपनाया। अनुराधा जी ने परिस्थिति के साथ समझोता कर लिया और जब तक उनकी सास रही तब तक उनके हुकुम मानती रही और उनका कटु व्यवहार सहती रही। अनुराधा जी का एकलौता बेटा था। उसका विवाह एक राईस खानदान की पढ़ी लिखी लड़की से हुआ अनुराधा जी सपरिवार बड़े शहर में शिफ्ट हो गयी। अनुराधा जी की यह बहु कुछ ज्यादा ही खुले विचारो की थी। अनुराधा जी वे उनके पति ने बहु के नोकरी करने पर कोई आपत्ति नही जताई। लेकिन जमाना बदल गया था बहु का ये छोटे कपडे पहनना और पार्टियो में जाना उन्हें खटकता था।उन्होंने कई बार बहु को समझाया लेकिन वह उन्हें कुछ नही समझती थी।बल्कि यह कहती थी की आप लोग गांव से आये है आप इन सब चीज़ों में दखल मत दीजिये।उन्होंने इसकी शिकायत बेटे से भी करी। लेकिन बेटे ने भी अनसुनी कर दी। फिर से सिलसिला यूं ही चलता रहा।और अब जाकर परिस्थिति कुछ ऐसी हो गयी है की इस बुढ़ापे में भी अनुराधा जी अपनी ज़िन्दगी से समझोता करने को तैयार है।
- शिवांगी पुरोहित
Comments
Post a Comment