सोशल मीडिया बन रहा न्यायालय

कुछ दिन पहले गुरुग्राम में एक लड़के ने आत्महत्या कर ली। लोग कह रहे है वो 17 साल का था। जानते है क्या हुआ उसके साथ?? एक लड़की ने इंस्टाग्राम पर स्टोरी डाल कर लोगो को बताया कि इन लड़के ने 2 साल पहले उसे molest किया। उस लड़के का नाम भी लिखा - manav singh. इस बहन के पर कोई सबूत नही था। 2 साल लगा दिए उसने इस बात को बाहर लाने में। अगर सच मे उसके साथ ऐसा हुआ था तो उसे पुलिस के पास जाना था। खुद जज बनने की क्या जरूरत थी। उसके बाद उस लड़के के पास कई लोगों की धमकियां जाने लगी उसे डराया जाने लगा। परेशान होकर उसने 11वे माले से कूद कर आत्महत्या कर ली। इसके बाद वो लड़की बोली कि अगर उसने प्रेशर में आकर जान दे दी तो इसमें मेरी गलती नही है। गलती तेरी नही है बहन गलती इस समाज की है जो कभी इस तरफ़ लुढ़कता है कभी उस तरफ। अगर लड़के ने ऐसा कुछ किया था तो उसे सजा दिलवाती। और अगर उस लड़के ने कुछ नही किया तो इस लड़की को सजा कौन देगा? मैंने दोनो पहलुओं पर किताबें  लिखी है। पीड़िता पर भी और फेक फेमिनिज़्म पर भी। और रही बात जजमेंट की तो लड़की ने खुद अपना मामला सोशल मीडिया पर परोसा। उस 15 साल के लड़के ने अपने से बड़ी लड़की को मोलेस्ट किया और 2 साल बाद बहन जी उसका नाम लिख कर इंस्टा पर स्टोरी डाल रही है। 11 वे माले से कूद गया वो। लेकिन लोग अपना मुंह तभी खोलेगे जब उनके साथ ऐसा होगा। हर लड़का दुष्ट नही होता। लेकिन उनकी सुनेगा कौन। बहुत कम लोग है जो इन बातों पर बोलते है क्योंकि किसी को बुरा नही बनना है। लड़का कोर्ट भी जाता तो सालों लग जाते बेकसूर साबित होने में। आजकल का फेमिनिज़्म लड़कियों के दारू सिगरेट से शुरू होता है और झूठे आरोपो पर खत्म। अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोग हर महिला को शक की नजरो से देखेगे। यही हालात बलात्कार संबंधी मामलों के भी है।भारत में हर साल दर्ज 45000 दुष्कर्म के केसों में जितने सैंकड़ों केस झूठे होते है या प्रेमी युगलों की गलतियों के परिणाम होते है उतने ही सैंकड़ों केस समाज में बदनामी के डर से दबे रह जाते है और निर्दोष लड़कियो के साथ हुई दरिंदगी का न्याय उन्हें नही मिल पाता है।पश्चिमी सभ्यता की ओर तेजी से बढ़ते कदम युवावस्था में कई बेवकूफियां करवा देते है और परिणाम स्वरुप भारत की सभ्यता पर एक कलंक का दाग छोड़ जाते है।जिस प्रकार महिला सशक्तिकरण  का दुरूपयोग हो रहा है उसे देखते हुए पुरुषों की दृष्टि में भारत महिला प्रधान बनता जा रहा है।ये बदलती हुई सोच ज्यादातर भारतीय युवाओ में देखने को मिल रही है जो बलात्कार या महिला प्रताड़ना का नाम सुनकर तिलमिला उठते है और पुरुष के बेचारेपन की ओर देखने की दुहाई देते है।लोगो की मानसिकता कुछ ऐसी हो गयी है की यदि कोई नारी पर हो रहे अत्याचार के बारें में तर्क दें तो महिला प्रधान कहला जाता है और यदि पुरुषों पर लगे झूठे केसों की बात करें तो महिला विरोधी बन जाता है।तात्पर्य यह निकलता है कि एक ओर कुआ है ओर दूसरी ओर खाई।जनता और न्यायालय इसी असमन्जस में रह जाते है कि दहेज़ का केस कहीं झूठा तो नही या बलात्कार का केस झूठा तो नही? यहाँ कोई सन्दर्भ एकतरफा नही है,और न ही भारत देश एकतरफा है।भारत को न तो पुरुष प्रधान कहा जाय और न ही महिला प्रधान कहा जाय।हमारा ये भारत संस्कृति प्रधान माना जाए।वह भारत जो संस्कारों की जननी है वहां न कोई नारी प्रताड़ित हो और न ही कोई पुरुष।भारत में प्रत्येक महिला और पुरुष एक दुसरे के कंधे से कन्धा मिला कर चले।महिला और पुरुष एक गाड़ी के दो पहियों के सामान होते है जिनकी आपस में तुलना नही होनी चाहिए क्योंकि ये दोनों एक दुसरे के पूरक होते है।
- शिवांगी पुरोहित


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