आखिर क्यों बिकता है ईमान
आज भारत एक ऐसा देश बन गया है जहाँ हर वैधानिक कार्य को अवैधानिक तरीके से किया जाना आम बात हो गयी है।सरकार से लेकर गैर सरकारी लोग भी रिश्वत और कपट से ओतप्रोत है।अब न तो योग्यता की ज़रूरत बाकि है न ईमानदारी की।सबको बहुत सारे पैसे कामना है चाहे उसके लिए अपना ईमान ही क्यों न बेचना पड़े।भारत में लाखो छात्र प्रतिवर्ष इस भ्रष्टाचार के दलदल में कूद कर अपनी योग्यता से अधिक पा जाते है और कई होनहार बच्चे भ्रष्टाचार के आगे हार जाते है। बात करें यदि काले धन की तो यह भ्रष्टाचार का मुख्य अंग है। पहले ऐसा माना जाता था की काला धन विदेशो में है जो भारतीय राजनेताओ द्वारा अपनी अंधाधुंध आय से बचा कर स्विश बैंक जैसी विदेशी संस्थाओ में जमा किया गया है। लेकिन पिछले वर्ष 2016 में यह पता चला की काला धन तो भारत की गरीब जनता के पास है वह जनता जो अपने बच्चों की शादी और पढाई लिखाई के लिए काला धन जमा कर रही है। देखते ही देखते जनता की यह जमा पूंजी कागज के टुकड़ो में बदल गयी। नोट बंदी का असर तो हुआ लेकिन इस कदम से भारत की अर्थव्यवस्था 4 महीने तक तहस नहस रही। अब भ्रष्टाचार ख़त्म हुआ या नही यह तो आखो देखी बात है।लेकिन एक उत्तम सुझाव यह भी है की रिश्वत, बेईमानी,कपट और मक्कारी को ख़त्म करना है तो भारतीयो के मन में इंसानियत का जगना आवश्यक है।यदि 1 बार ये इंसानियत जाग गयी तो लोग ईमानदारी की कदर करने लगेंगे और देखते ही देखते भारत के अंदर का भरष्टाचार ख़त्म हो जायेगा।
- शिवांगी पुरोहित
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