किसान आंदोलन
इस समय मध्यप्रदेश किसान आंदोलन को लेकर चर्चा में है। 1 जून को महाराष्ट्र में शुरू हुए इस आंदोलन ने अगले दिन ही मध्यप्रदेश में तूल पकड़ लिया। मप्र के किसान विगत दो वर्ष से पड़ रहे सूखे के कारण कर्ज चुकाने में असमर्थ हो चुके है। कथित रूप से उन्हें न तो मुआवज़ा मिल रहा है न ही उनकी परेशानियां ख़त्म हो रही है। विगत दो वर्षो में मप्र के सैकड़ो किसानो ने आत्महत्या कर अपनी जान दे दी। कारण यही है बढ़ता हुआ कर्जा, सूदखोरों का दबाब, बर्बाद हो चुकी फसल और मूकदर्शक सरकार। जब एक किसान मरता है तो उसके परिवार की दशा पूछने कोई नही जाता। उन लोगो से जाकर यह कोई नही पूछता की अब आपकी गुजर बसर कैसे होगी। खासकर वो परिवार जिसका मुखिया पेड़ से लटक गया और अपने पीछे बच्चों और असहाय पत्नी को छोड़ गया। ऐसे सैकड़ो परिवार इस दशा में जैसे तैसे अपनी ज़िन्दगी गुजार रहे है। लेकिन सरकार दिन प्रतिदिन नयी नयी योजनाये चला रही है अंधाधुंध पैसा बर्बाद कर रही है लेकिन किसानो को मुआवज़ा फिर भी नही मिल रहा। यदि सरकार इतने करोडो का बजट लेकर आती है तो इसका मतलब यह होना चाहिए की अब कोई भी परिवार भूखा नही रहेगा, कोई भी पढ़ा लिखा युवा बेरोज़गार नही रहेगा और कोई भी किसान आत्महत्या नही करेगा। लेकिन जब किसान आंदोलन ने भारी कोहराम के साथ तूल पकड़ा तब सरकार होश में आई। केवल मप्र की सरकार ही नही । अपितु किसान आंदोलन ने केंन्द्र सरकार को तक हिला डाला। विपक्ष की पार्टिया भी अपना अपना झंडा गाड़ने आ गयी। सभी नेता प्रतिपक्ष किसानो के प्रति सहनुभूूति जताने आ गए। पार्टियो ने किसान आंदोलन के बहाने प्रचार करना शुरू कर दिया और मिलकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाना और एक दूसरे की गलतिया गिनना शुरु कर दिया। समस्या को सुलझाने का प्रयास किसी ने नही किया। इस दौरान राजनैतिक पार्टियो को एक दूसरे की टाँग खीचने का अच्छा अवसर मिल गया और वही दूसरी ओर किसानो पर गोलियां चलायी जाने लगी। किसानो की मौत तक होने लगी। लेकिन शायद इन मौतों के बदले मुख्यमंत्री जी का एक उपवास काफी था।तत्पश्चात मप्र सरकार की ओर से ओकिसानो की मांगे पूरी करने का वादा किया गया। लेकिन कुछ उपद्रव किसानो के कारण नही हुये। बल्कि हुड़दंग और शोरशराबा मप्र के युवा समुदाय के कारण ज्यादा हुआ। आजकल सभी को राजनीती और पार्टियो में उतरने का काफी शौक चढ़ा हुआ है क्योंकि बेचारे पढ़े लिखे बेरोजगार युवा आखिर करेंगे भी क्या?? किसान आंदोलन का फायदा उठाकर उपद्रव और हुड़दंग इन्होंने की मचाया। इस प्रकार की परिस्तिथि और मूकदर्शक सरकार को देखते हुए युवा समुदाय भी भरी आक्रोश में है और उनका यह आक्रोश सड़को से लेकर फेसबुक और ट्विटर तक दिखाई पड़ रहा है।
मप्र की अधिकांश जनसँख्या कृषि पर निर्भर है और लाखो किसान इस परिस्तिथि से जूझ रहे है । उनके सर पर कर्ज का भार और परिवार की चिंता जब बढ़ने लगती है तो वे निश्चित हि आत्महत्या का मार्ग अपनाते है। अब शायद सरकार किसानो के कर्ज माफ़ कर दे और परिस्तिथियां नियंत्रण में आ जाएं।
- शिवांगी पुरोहित
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