बेरोजगार है हम....

हम भारत के नौजवान है।हमसे ही बनता है भारत का युवा समुदाय। हमारे पास इंजीनियर कम्प्यूटर वाणिज्य मैनेजमेंट आर्ट्स आदि सभी डिग्रीया है। लेकिन हमारी ये योग्यता की पोथी फाइलो में बंद पड़ी है। ये बड़ी बड़ी डिग्रीयां लेकर भी हम आज प्राइवेट स्कूलो में ब्लैकबोर्ड पर चॉक घिसने पर मजबूर है जहाँ हमारी मेहनत के बदले दो चार हज़ार रूपये पकड़ा दिए जाते है। क्या आज की दुनिया में चार हज़ार रूपये वेतन पाने वाला शिक्षक अपने परिवार की मूलभूत आवश्यकताओ को पूरा कर सकता है?और अब मप्र में लंबे समय से युवाओं को नौकरी दिलाने में असफल साबित हो रहे रोजगार कार्यालयों का भविष्य तय हो चुका है। 51 जिला रोजगार कार्यालयों में से 15 को पीपीपी मॉडल पर प्लेसमेंट सेंटर के रूप में चलाया जाएगा, जबकि 36 बंद किए जाएंगे। पब्लिक, प्राइवेट, पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत निजी कंपनी चुनी जाएगी जो अन्य जिलों का काम भी संभालेगी और एक-एक कर बाकी जिलों के कार्यालय बंद कर दिए जाएंगे।यह आदेश 7 मार्च 2017 को प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान ने दिया था, जिस पर अब अमल करने की तैयारी की जा रही है। प्रदेश में लाखों युवा ऐसे हैं, जिन्हें पंजीकरण के बाद भी नौकरी नहीं मिली। इधर रोजगार कार्यालयों की हालत भी खराब होती जा रही है। कहीं स्टाफ की कमी है तो कहीं साधन-सुविधाओं के अभाव में काम नहीं हो रहा।वैसे भी आज के पढे लिखे युवा राजनेतिक एवम् सामाजिक मुद्दों पर दंगा मचाने का काम करने लगे है। चाहे हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई को या किसान आंदोलन। हमारे देश के युवा अपना हुनर सड़को पर दिखाने निकल पड़ते है। यदि इनके पास कोई काम होता तो उन्हें काम की चिंता होती न की दंगा मचाने की। तो हालात कुछ ऐसे हो गए है की आज की शिक्षा प्रणाली पढ़े लिखे बेरोजगार पैदा कर रही है और दूसरी ओर आरक्षण जेसी नीति बेरोजगारो की संख्या बढ़ाने में अपना योगदान दे रही है। देश में सबसे ज्यादा शिक्षित बेरोजगार मध्यम वर्गीय परिवार के और सामान्य वर्ग के है। जिनके मुह का निवाला कोई और छीन कर ले जाता है। और वर्तमान में ऐसे शिक्षित बेरोजगार दिन ब दिन बढ़ते जा रहे है। जो बेहद संवेदनशील विषय है।
- शिवांगी पुरोहित

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