बदलती परिस्तिथियाँ और ग्रामीण हालात

गांधी जी ने गांव को भारत की आत्मा कहा है। इन गाँवो से ही भारतीय संस्कृति की पहचान है। गांव का रहन सहन और वातावरण ही असल में भारत है। गांव का पहनावा और गाये जाने वाले लोकगीत भारतीय संस्कृति की कहानी कहते है।

लेकिन जैसे जैसे समय बदला वैसे वैसे सभ्यता भी बदलती गयी। अब गांव केवल पिछड़ा हुआ क्षेत्र बनकर रह गए है और नगर महानगर में बदलने लगे है। जहाँ शहरों में हज़ारो स्कूल कॉलेज है वही गांव का भविष्य एक सरकारी स्कूल पर टिका हुआ है और कई जगह तो सरकारी स्कूल भी नही है। बच्चे मिलो दूर जाते है चाहे बारिश हो या कोहरा हो, सड़क हो या कीचड हो हर परिस्तिथि में बच्चों को स्कूल पहुचने में परेशानी होती है।
जहाँ शहरों में नए नए हाइवे और नेशनल हाइवे बनाये जा रहे है वही गांव में अभी भी सड़के कच्ची है और जहा पक्की है वे भी मक्कारी से उखड़ी हुई और गड्ढो से भरी हुई है। विकास कार्य उस वक्त तेज़ होते है जब चुनाव समीप होते है  बाकि समय में विकास की गति धीमी बनी रहती है अब तो ग्रामीण पंचायती राज व्यवस्था में भी आरक्षण लागू कर दिया गया है की महिला एसटी या पुरुष एससी उम्मीदवार होने बाकि वर्ग के व्यक्ति चुनाव नही लड़ सकेंगे। अब होता ये है की जिस वर्ग का व्यक्ति चुनाव जीत जाता है अगले पञ्च वर्ष तक उसी वर्ग का उद्धार होता है।
 सरकार शौचालय बनवा रही है लेकिन कुछ लोग उपयोग कर रहे है और कुछ लोग उनमे मवेशी बांध रहे है। यहाँ खेल मानसिकता और समझ का है।
पिछले वर्ष स्कूल की तरफ से किये गए सर्वे में मैंने जाना की सरकार ने बिजली, पानी और संचार की सुविधा गांव में दे रखी है।लेकिन यदि कही किसी गांव में बिजली का खम्बा गिर जाय या बड़ा सा पेड़ गिर जाये, तार टूट जाये तो विद्युत् विभाग को फरियाद सुनने में 3 - 4 दिन लग जाते है।
सर्वे का नतीजा यह निकला की बात शिक्षा की हो, सड़को की हो, बिजली पानी की हो या स्वच्छता की हो सरकार की उदासीनता और लोगो की समझ ही  परिस्तिथियों की जिम्मेदार है।
- शिवांगी पुरोहित

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