मेरा पत्र बापू के नाम

प्रिय बापू,
               आज आप हमारे साथ नही है,लेकिन फिर भी हम सब के ह्रदय में जीवित है।मैंने कक्षा 9वीं में आपके जीवन की कई घटनाये पढ़ी और काशीनाथ त्रिवेदी के अनुवाद में आपकी आत्मकथा "सत्य के प्रयोग" भी पढ़ी।लेखन के क्षेत्र में आने के बाद मुझे काफी कुछ जानने को मिला।मुझे आपको यह बताते हुए बहुत दुःख हो रहा है की लोग आपके द्वारा बताये गए मार्ग से हटते जा रहे है, वे आपकी नीतियों का अनुसरण नही कर रहे है।आपने अहिंसा का पाठ पढ़ाया और लोग आज भी हिन्दू मुस्लिम के नाम पर लड़ रहे है।जो बचपन में साथ खेला करते थे, वे आज एक दूसरे के खिलाफ सड़को पर उतार आते है,एक दूसरे के खिलाफ नारे लगते है,पथराव भी करते है और हत्याए भी करते है।
आपकी आत्मकथा "सत्य के प्रयोग" में इस बात का विस्तृत वर्णन है की कठिन परिस्तिथियों में भी आपने मांसाहार नही किया। लेकिन बापू, आप जानते है आज बारात में अधिकतम लोग गौमांस खाने के लिए लड़ रहे है।बीफ बीफ चिल्ला रहे है। एक ओर गाय को पूजते है दूसरी ओर उसकी हत्या कर उसे आहार बनाते है।आपने हमेशा लोगो को सत्य बोलने के लिए प्रेरित किया। आपने तो अपने व्यसन किये जाने की गलती पिता के सामने  स्वीकार कर ली थी। लेकिन आज के नवयुवक ऐसे नही है बापू, वे शराब सिगरेट गांजा जैसे व्यसन करते है। उन्हें माता पिता का बिलकुल भी डर नही है इस प्रकार देख का भविष्य खोखला होता जा रहा है।
आपने सदैव हरिजन और दलितों का समर्थन किया और छुआछूत भेदभाव का विरोध किया।लेकिन 67 वर्ष पहले लागू किये गए आरक्षण ने हमारी लुटिया डुबो दी है। भेदभाव तो ख़त्म हो ही गया पर आरक्षण के कारन सब अस्त व्यस्त हो गया है।
आपने नारी समाज पर लागू कुरीतियो को समाप्त किया लेकिन आज भी नारी पर अत्याचार जारी है।आज भी पुरुष प्रधान मानसिकता के लोग नारी का शोषण करते है।जो महिलाये स्वतंत्र है वे भारतीय सभ्यता को छोड़ कर पश्चिमी सभ्यता को अपनाने लगी है।आपराध निरंतर बढ़ते जा रहे है और विवाह जैसे पवन बंधन रोजाना टूट रहे है।आधुनिकता की आड़ में लोग अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे है।
बापू।। आपसे मेरा एक निवेदन है की एक बार फिर वापस आ जाइए और सभी के कान मरोड़कर "सत्य और अहिंसा" का पाठ पढ़ाइये।
                                                  - शिवांगी पुरोहित

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