क्या हो गया है हमारे मप्र को

नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो ने 2015 में जो अपराध आंकड़े जारी किये थे वे वाकई चोंकाने वाले थे।रिपोर्ट के अनुसार दुष्कर्म जैसे घिनोने अपराध में मप्र का नाम सबसे ऊपर था।यहाँ 2015 में 4391 दुष्कर्म के मामले दर्ज किये गए थे जिनमे औसतन एक दिन में 13 बलात्कार हुए।दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र और फिर राजिस्थान और दिल्ली का नाम था। मप्र हत्या से लेकर बलात्कार तक , भष्टाचार से लेकर किसानो पर अत्याचार तक चर्चा का केंद्र बना रहता है। मप्र में हर कभी किसी भी लड़की की आबरू लुटती है हर कभी किसान आत्महत्या करता है और आये दिन खुलेआम हत्याए होती है।लेकिन हमारे शुभचिन्तक नेतागण इसी बात पर बहस करते रह जाते है की गलती किसकी थी।आज यहाँ ईमानदारी और निःस्वार्थ सेवा का कोई मोल नही बचा।आखिर उस लड़की की क्या गलती थी जो पुलिस स्टेशन से 100 मीटर दूर उसके साथ ऐसी दरिंदगी हुई।4 लोगो ने उसका रेप किया लेकिन किसी को खबर ही नही।दूसरी ओर पुलिस वाले इस मामले को इस कदर मज़ाक में ले रहे थे की एक महिला पुलिस कर्मी इस घटना की बात करते हुए ठहाके लगा रही थी।ऊपरी अधिकारियो को घटना की कोई खबर ही नही क्योकि वे 9:30 के बाद वीवीआईपी हो जाते है और किसी से बात नही करते।मेरा मप्र सरकार से एक प्रश्न है की आखिर ऐसे लोग पुलिस में कर क्या रहे है??इन्हें क्यों इतने बड़े पद पर बैठाया गया है??आम लोगो के साथ नही तो कम से कम एक पुलिस वाले की बेटी के साथ तो न्याय कर दो।2 आरोपियों को खुद उस लड़की के पिता ने पकड़ा और ये पुलिस अधिकारी इसी बात पर बहस करते रह गए की मामला किस पुलिस स्टेशन का है।

न्याय व्यवस्था की हालत कुछ ऐसी है की बलात्कार का एक मुकदमा सुलझाने में सालों लग जाते है और पीड़ित और उसका परिवार कोर्ट के चक्कर लगते रहते है।उधर अपराधी आज़ाद घूमता रहता है।इसी तरह कई अपराधी खुलेआम घूम रहे है और अपराधो को अंजाम दे रहे है न तो उन्हें पुलिस का डर है और न ही सरकार का।क्योंकि इन बढ़ते अपराधो में पुलिस और सरकार दोनों ही जिम्मेदार है क्योंकि ये अपने कर्तव्यों का भली भाँति निर्वाह नही कर रहे है।एक असल बात यह भी है कि हम सभी इंसानियत खोते जा रहे है जब तक स्वयं पर आंच नही आती हम अपना कदम आगे नही बढ़ाते।आखिर क्यों हम इंसान से जानवर बनते जा रहे है रोजाना हमे इस बात के प्रमाण मिलते है।उदाहरण स्वरुप 2 महीने पहले पिपरिया मप्र में आरएसएस कार्यकर्त्ता 23 वर्षीय युवक की आपसी रंजिश के चलते दिनदहाड़े चाकू मार कर हत्या कर दी गयी। वह युवक बड़ी देर तक जमींन पर पड़ा तड़पता रहा और लोग उसका वीडियो बनाते रहे।शर्मनाक बात तो यह है की अस्पताल वहाँ से 1 किमी दूर था।यदि लोग चाहते तो उसे तुरंत अस्पताल पहुचा सकते थे लेकिन किसी ने उसकी मदद नही की क्योंकि वह उनके परिवार का सदस्य नही था।अंजाम यह रहा की उसकी मृत्यु हो गयी और उसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया।कहने का तात्पर्य यह है की अपराधो को रोकना पुलिस का कर्तव्य है, न्याय दिलाना सरकार का कर्तव्य है तो मदद करना हमारा भी कर्तव्य होना चाहिये।

यदि बात मप्र के हालातो के बारे में है तो मप्र एक और मामले में आगे है।मप्र के मुख्यमंत्री जी ने वाशिंगटन यात्रा के दौरान मप्र की सड़कों को वहाँ की सड़को से बेहतर करार दिया।शिवराज सिंह चौहान के बयान को जनता सिरे से ख़ारिज कर रही है क्योंकि सड़को की दुर्गति को जनता ही समझती है,होने वाले हादसों के परिणाम जनता ही भुगतती है।इन हादसों के लिए सड़को को ही जिम्मेदार ठहराना चाहिए क्योकि सड़के ही उबड़ खाबड़ और गड्ढो वाली होंगी तो हादसे होना स्वाभाविक है।2016 में सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक भारत में हर 60 मिनिट में 56 सड़क दुर्घटनाये होती है।साल 2015 में देश में 4.89 लाख सड़क दुर्घटनाये हुई जिनमे 1.4 लाख लोग मारे गए और 4.93 लाख लोग घायल हुए।रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ख़राब सड़को वाले 13 राज्यो में मप्र तीसरे नंबर पर है।इसका मतलब यह हुआ की वाशिंगटन किसी गड्ढे में स्थित है।वही दूसरी ओर विगत कुछ वर्षो से मप्र में ठीक से बारिश नही हुई।किसान अपना कर्ज नही चुका पा रहे है आये दिन खुदखुशी कर रहे है।किसान आंदोलन का उन्हें कोई फायदा होता नही दिख रहा है क्योंकि जिस सरकार ने उन्हें कर्ज माफ़ी का वादा किया था उन्हें 1रु-2रु देकर उनका मज़ाक बनाया जा रहा है।अभी तक किसी का क़र्ज़ माफ़ नही किया गया है।इस समय कुल 85 लाख छोटे बड़े किसान है।इसमें करीब 50 लाख किसानो पर 60 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ है।मप्र में हर साल हजारो किसान आत्महत्या करते है कारण यही है बढ़ता हुआ कर्जा, सूदखोरों का दबाब, बर्बाद हो चुकी फसल और मूकदर्शक सरकार। यदि सरकार इतने करोडो का बजट लेकर आती है तो इसका मतलब यह होना चाहिए की अब कोई भी परिवार भूखा नही रहेगा, कोई भी पढ़ा लिखा युवा बेरोज़गार नही रहेगा और कोई भी किसान आत्महत्या नही करेगा।लेकिन यह हालात सुधरने की बजाय बिगड़ते जा रहे है जो बेहद संवेदनशील विषय है।

- शिवांगी पुरोहित


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