डूब मरो तो अच्छा है

एक बलात्कार नाम का शब्द भारत के ग्राफ को बड़ी बेरहमी से ऊपर उठा रहा है।वे लड़कियां जिन्हें लोग पीड़िता कहते हैे।मीडिया वाले उनके मुँह में माइक घुसेड़ कर उनका चेहरा धुंधला कर उनसे ये पूछते है कि क्या हुआ था।जिनके परिवार को सालों तक कोर्ट के चक्कर काटना है।डॉक्टर उन्हें शक की निगाहों से देखता है कि कहीं सहमति से तो नही हुआ।वो जिन्हें महिला पुलिसकर्मी के आभाव में पुलिस वाले के सवालों का जबाब देने में असमंजस होता है।जिन्हें देख मोहल्ले के लोग कानाफूसी करते है।जिनके घरवाले उन्हें कोसते है कि - तू पैदा ही क्यों हुई थी? क्या वे वास्तव में पीड़िता होती है।
भारत में प्रतिदिन 15 बलात्कार होते है और सालाना यह संख्या हज़ारो की होती है। लेकिन इन मामलो के दो पहलु होते है। एक पहलु जो 8 माह की बच्ची के बलात्कार से शुरू होता है और सामूहिक दुष्कर्म और हत्या पर ख़त्म होता है।इस पहलू में वे सभी मामले आते है जो वास्तव में बलात्कार के होते है और दूसरा पहलू वो होता है जिसमे नादान परिदों की करतूतो को बलात्कार का नाम दे दिया जाता है। इस पहलू को समझने के लिए एक घटना पर प्रकाश डालना जरुरी है।घटना फ़रवरी 2018 की है जिसमे इटारसी थाना क्षेत्र के गांव की नाबालिग लड़की अपने 25 वर्षीय प्रेमी के साथ भाग कर बैतूल आ गयी। कई दिनों बाद ढूंढने पर पुलिस ने लड़की और उसके प्रेमी को बैतूल से बरामद किया।इसके बाद परिणाम यह रहा कि लड़की बलात्कार पीड़िता बन गयी और लड़का बलत्कार का आरोपी बन गया और जेल भेज दिया गया और अखबार में खबर छपी कि शादी का झांसा देकर किया दुष्कर्म। हमारे देश की न्याय व्यवस्था पर यह सबसे बड़ा कलंक है कि जानते बूझते हुए भी सही निर्णय नहीं लिया जाता। क्या वो लड़की जो अपने जन्म देने वाले माँ बाप को छोड़ कर भाग गयी थी उसे बलात्कार पीड़िता कहलाने का हक़ है?? आज 16 वर्ष कि लड़की अपनी पढाई पर ध्यान न देकर शादी करने और गृहस्थी सजाने के सपने देख अपनी देह किसी को भी सौंप सकती है तो इसे उसकी नासमझी या नादानी क्यों समझा जाना चाहिए। यदि बलात्कार करने वाले को जेल भेज जाता है तो इन नादान लड़कियों को भी सुधार गृह भेज जाना चाहिए ।आज भारत जिस रफ़्तार से नारी सशक्तिकरण की ओर बढ़ रहा है ठीक उसी तरह इसका दुरूपयोग भी बढ़ता जा रहा है।आखिर क्या कारण है कि दहेज़ प्रताड़ना और बलात्कार संबंधी मामलों को सुलझाने में न्यायालय को 5 से लेकर 10 वर्ष तक का समय लग जाता है? सबका कारण एक ही है, हत्याओं तथा आत्महत्याओं के मामले में दहेज़ प्रताड़ना के झूठे केसों की बढ़ती संख्या तथा प्रेमी युगलों द्वारा की गयी बेवकूफियों को बलात्कार का रूप देना।जहाँ एक ओर अबला नारी पर हुई घरेलू हिंसा के मामले सालों तक न्यायालय में रखी फाइलों में सड़ते रहते है वही दूसरी ओर दहेज़ प्रताड़ना के झूठे केसों की दर्ज संख्या बढ़ती जाती है।जहां एक ओर अंगारों से दागी हुई महिला न्यायालय में इन्साफ की भीख मांगती रह जाती है वहीं दूसरी ओर एक निर्दोष पिता अपने बच्चों और परिवार को छोड़ सलाखों के पीछे पहुँच जाता है।यही हालात बलात्कार संबंधी मामलों के भी है।भारत में हर साल दर्ज 34000 दुष्कर्म के केसों में जितने सैंकड़ों केस झूठे होते है या प्रेमी युगलों की गलतियों के परिणाम होते है उतने ही सैंकड़ों केस समाज में बदनामी के डर से दबे रह जाते है और निर्दोष लड़कियो के साथ हुई दरिंदगी का न्याय उन्हें नही मिल पाता है।पश्चिमी सभ्यता की ओर तेजी से बढ़ते कदम युवावस्था में कई बेवकूफियां करवा देते है और परिणाम स्वरुप भारत की सभ्यता पर एक कलंक का दाग छोड़ जाते है।जिस प्रकार महिला सशक्तिकरण  का दुरूपयोग हो रहा है उसे देखते हुए पुरुषों की दृष्टि में भारत महिला प्रधान बनता जा रहा है।ये बदलती हुई सोच ज्यादातर भारतीय युवाओ में देखने को मिल रही है जो बलात्कार या महिला प्रताड़ना का नाम सुनकर तिलमिला उठते है और पुरुष के बेचारेपन की ओर देखने की दुहाई देते है।लोगो की मानसिकता कुछ ऐसी हो गयी है की यदि कोई नारी पर हो रहे अत्याचार के बारें में तर्क दें तो महिला प्रधान कहला जाता है और यदि पुरुषों पर लगे झूठे केसों की बात करें तो महिला विरोधी बन जाता है।तात्पर्य यह निकलता है कि एक ओर कुआ है ओर दूसरी ओर खाई।जनता और न्यायालय इसी असमन्जस में रह जाते है कि दहेज़ का केस कहीं झूठा तो नही या बलात्कार का केस झूठा तो नही? यहाँ कोई सन्दर्भ एकतरफा नही है,और न ही भारत देश एकतरफा है।भारत को न तो पुरुष प्रधान कहा जाय और न ही महिला प्रधान कहा जाय।हमारा ये भारत संस्कृति प्रधान माना जाए।वह भारत जो संस्कारों की जननी है वहां न कोई नारी प्रताड़ित हो और न ही कोई पुरुष।भारत में प्रत्येक महिला और पुरुष एक दुसरे के कंधे से कन्धा मिला कर चले।महिला और पुरुष एक गाड़ी के दो पहियों के सामान होते है जिनकी आपस में तुलना नही होनी चाहिए क्योंकि ये दोनों एक दुसरे के पूरक होते है।
- शिवांगी पुरोहित

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रम की आवश्यकता क्यों??

my 1st blog

माय लाइफ माय चॉइस