सुधर जाओ बेशर्मों

आजकल देखा जाये तो हर दूसरे शहर में एक वृद्धाश्रम होता है। जिस तरह बाल आश्रम जरुरत मंद बच्चों को पनाह देता है वैसे ही वृद्धाश्रम घर से निकले गए असहाय वृद्ध जनों को पनाह देता है। इन बुज़ुर्गो की हालात के ज़िम्मेदार और कोई नही अपितु उनके बच्चे ही होते है जिन्हें प्यार से हर परिस्तिथि में पाला होता है वे ही माँ बाप को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा देते है। ये परिणाम है भारतीय समाज का पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ने का।हम आधुनिकता के नाम पर अपनी संस्कृति और संस्कारो को इतना पीछे छोड़ रहे है की इन्सानियत कही न कही खोती जा रही है।माँ बाप हमे बिना किसी स्वार्थ के पालते है और हमसे केवल एक ही आशा रखते है की हम बड़े होकर उनकी लाठी बनेंगे और उनको बुढ़ापे में सहारा देंगे। लेकिन आजकल कुछ लोगो की स्वार्थता तो देखिये एक बार सारी संपत्ति मिल जाने पर अपने माँ बाप को ही त्याग देते है उन्हें बोझ समझने लगते है और घर से बेदखल कर देते है। जिनको समाज या सम्मान का डर होता है जो लोग ऐसा नही कर पाते वे अपने माँ बाप से अलग रहने लगते है और उन्हें अकेला छोड़ देते है। इतना ही नही जो लोग अपने माँ बाप के साथ रहते भी है तो कुछ लोग इतने हैवान होते है की अपने माँ बाप के साथ मार पीट भी करते है। आये दिन न्यूज़ चैनलो और सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो देखने को मिलते है जो हम अक्सर अपने आस पास देखते है जिनमे माँ बाप को घसीट घसीट कर मारा जाता है। जिस धरती पर हम रहते है उसे माता कहते है, जिन नदियो के जल का हम उपियोग करते है उन्हें माँ की संज्ञा देते है और कचरा साफ़ करने निकल पड़ते है वो भी केवल दिखावे के लिए।लेकिन वो माँ जिसने हमे जन्म दिया जिसने हमे पाला है उसकी इज़्ज़त करना तो दूर अपनी माँ और पिता को बेरहमी से मारते है।लोग अपने घर में कुत्ता पालते है और उसे बहुत प्यार भी करते है लाखो रुपयो में उस कुत्ते को खरीद कर लाते है पर माँ बाप की दवाइयो के लिए हमारे पास पैसे नही होते। आखिर क्यों हम उन्हें अपने जीते जी वृद्धाश्रमो के हवाले कर देते है।
आजकल फादर्स डे और मदर्स डे का बहुत चलन है। लेकिन  इन दोनों दिवसो को 75% लोग केवल सोशल मीडिया पर ही मानते है और असल ज़िन्दगी में माँ बाप को कोई तवाज़्ज़ो नही देते है।कहते है कि एक पत्नी का सबसे बड़ा हाथ होता है पति को उसके माँ बाप से दूर करने में और कहीं न कही ये सच भी है।पश्चिमी सभ्यता की ओर तेजी से बढ़ती लड़कियां सास ससुर की सेवा करने में नाक भौं सिकोड़ती है। मैंने कई बार सुना है की यदि हर बहु अपने सास ससुर में अपने माँ बाप की छवि देखे तो ऐसी नोबत ही न आये। इस बात से मुझे एक घटना याद आ गयी लगभग एक महीना पहले मेरी बुआ जी के ससुर का देहांत हो गया। मै जब बुआ जी से मिली तो उन्होंने कहा- मुझे बहुत चाहते थे, कहते थे की तू ही मेरी बहु है बाकि सब कचरा है। और मैंने उनकी बाकि दो बहुओं को भी यही कहए सुना  की- मुझे बहुत चाहते थे, कहते थे की तू ही मेरी बहु है बाकि सब कचरा है।तब मेरी समझ में आया की दादाजी बहुत समझदार थे। जिस तरह उन्होंने सभी के साथ एक प्यार भरा बंधन बांध के रखा था वो उनके मरने के बाद भी नही टूटा।यदि बुज़ुर्ग यही रास्ता अपना ले तो सारे वृद्धाश्रमो में ताला लग जायेगा।
- शिवांगी पुरोहित।

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