मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता


मनोरंजन के नाम पर इतनी अश्लीलता फैलाई जा रही हैं कि अब मनोरंजन और फूहड़पन में फर्क कर पाना मुश्किल है। जहां सरकार एडवटाइज को लेकर समय निर्धारित कर देती है कि कौन सा एड कितने बजे से कितने बजे तक ही टीवी पर चलना चाहिए ताकि छोटे बच्चों पर इसका प्रभाव न पड़े। वही बेधड़क नेटफ्लिक्स पर बेहूदा वेब सीरीज के लिए लोग पागल हुए जा रहे हैं। आज स्तिथि ऐसी है कि परमाणु जैसी फ़िल्म जो हमें देशभक्ति का एक बेहद सुन्दर सन्देश देती है और भारतीयता की भावना को झकझोर कर बाहर आने को मजबूर कर देती है उस फ़िल्म की अपेक्षा एक अश्लील फ़िल्म को देखने के लिए कई गुना दर्शकों की भीड़ लगी। अब देखा जाये तो इस तरह का फूहड़पन युवाओं की सोच और मानसिकता को अपने अनुसार बदल देता है। जहाँ सिनेमा हमें जगाने का कुछ कर दिखाने का सपना दिखाता है, एक किरदार के जरिये उस तरह का बन जाने की प्रेरणा दे जाता है वही इन किरदारों की वेशभूषा भी युवाओं को बेहद प्रभावित करती है। जिस तरह नीरजा को देख कर लड़कियां प्रेरित हों की हम भी किस दिन नीरजा बन कर दिखाएंगे उसी तरह अभिनेत्रियों की वेशभूषाओं का ऐसा गजब का अनुसरण की फैशन के नाम पर अधनग्न हो कर सड़कों पर घूमना आम हो गया है। ठीक है भई! फैशन को अपनाओ लेकिन फूहड़पन को नहीं। नेटफ्लिक्स पर चल रही बेहूदा स्टोरीज जिनमें बॉलीवुड के मंजे कलाकार अभिनय कर रहे है। उन्हें देखने के लिए युवाओं को मानो पागलपन सवार है। नवाजुद्दीन सिद्दकी और राधिका आप्टे सहित कई सितारे इटरनेट पर अश्लीलता फैलाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। पब्लिसिटी भी इतनी की यदि किसी ने नेटफ्लिक्स का नाम न भी सुना हो तो उसके घर जाकर उसके कान में बोल देते है। कहने का मतलब ये है कि चाहे फेसबुक हो यूट्यूब हो या इंस्टाग्राम यहां इनकी स्टोरी की बेहूदा ऐडवटाइज लगी ही रहती है। हम कर कुछ और रहे होते है और आखो के सामने इनकी तस्वीरें चलने लगती है। इतने विज्ञापन से अब शायद हर सोशल मीडिया यूजर नेटफ्लिक्स के बारे में जान गया होगा कि यहां कुछ सभ्य लोग अपनी सभ्यता का परिचय देने कथा कहानी में अभिनय करते हैं और समाज को एक बहुत बेहतर सन्देश देते है। क्या कोई बताएगा इन वेब सीरीज को बनाने से फायदा क्या हो रहा है। हमारे पैसे जा रहे है और वे लोग कमा रहे है। अभी कुछ सालों पहले एक फ़िल्म बनी थी "पिंक" शुरुआत में ट्रेलर देख कर लगा कि ये कहानी बलात्कार पीड़िताओं की है जो अपने न्याय के लिए लड़ती हैं। लेकिन फ़िल्म देखने के बाद सारी आशाओं पर पानी फिर गया। आशा तो यह थी कि उस फ़िल्म को देखने के बाद हम मोटिवेट होंगे। लेकिन फ़िल्में बनाने वाले यही सोच के फ़िल्में बनाने लगे है कि फ़िल्म में खुद अश्लील नही होगा कुछ विवादित नही होगा तो लोग देखेंगे नही। यही काम हालिया फ़िल्म वीरे दी वेडिंग में किया गया। इतना विवाद हुआ कि 3 दिन में करोड़ों कमा लिए सिर्फ अश्लीलता के बलबूते पर। अच्छी फिल्में भी बनती है सुपर हिट होती हैं  जरूरी नही की फ़िल्म में अश्लीलता डाली जाये। अब कहने वाले तो ये कहेंगे कि "इसमें कुछ गलत नही है जिसकी जिसमे रूचि वो वही देखेगा"  ठीक है.. लेकिन इन के लिए एक लिमिट तय की जानी चाहिए। क्योकि इन कन्टेन्ट से किशोरवय बच्चों पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है और वे इस गंदगी की चपेट में आ जाते है। आज कल के युवाओं के लिए ये बातें कोई मायने नही रखती वे इसे आधुनिकता कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं लेकिन मनोरंजन के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है उससे बच्चे अछूते नही हैं। इन सब पर नियंत्रण होना चाहिए।
- शिवांगी पुरोहित

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