विधानसभा चुनाव में चिल्लर पार्टी

क्या आप जानते है भारत का एक भी विश्वविद्यालय दुनिया के टॉप 200 कि लिस्ट में क्यों नहीं है। आइये विस्तार से बताती हूँ भारत के भूले भटके युवाओं की हालात। आज तक तो यह चल रहा था कि गली के कुछ लड़के मिलकर अपनी समिति बनाकर समाज सेवा करते थे। वो तो काफी अच्छा है कि युवाओं में सामाजिक कल्याण की भावना ऐसे ही विकसित होती है। लेकिन अब.. इन युवाओं को राजनीती के सपने दिखाए जाने लगे है। किसी ने एक मुद्दा पकड़ा कुछ युवाओं को इकठ्ठा किया सड़कों पर नोटंकी की और इनकी देखा देखी और युवा खिंचे चले आये। अब देखा जाये तो इन 3 4 सालों में जितने भी सांप्रदायिक और जातिगत दंगे हुए है वे इसी नौटंकी के चलते हुए है। न जाने क्यों ये प्रशासन इन फर्जी संगठनों को वैद्यता प्रदान करता है और इन्हें मौका देता है देश में अशांति फैलाने का। क्या बिना संगठन के आप लोग इकट्ठे नहीं हो सकते मिलकर काम नहीं कर सकते है।जब काशी में पुल गिरा था तो बीएचयू के छात्रों ने काफी मदद की थी। जहाँ तक यूनिवर्सिटी लेवल के संगठनो की बात है तो वहां तक ठीक मान लेते है। लेकिन ये ही बच्चे जब जातिगत संगठनों से जुड़ते है तो इन्हें राजनीती के सपने दिखाए जाने लगते है और इनका इतना ब्रेन वाश कर दिया जाता है कि उन्हें सही और गलत में फर्क समझ नहीं आता। वे इतने स्वार्थी हो जाते है कि उन्हें उनके संगठन के अतिरिक्त कुछ दिखता ही नहीं। साथ ही ये युवा अपने माँ बाप का ना जाने कितना पैसा इन संगठनो की आये दिन होने वाली नौटंकी में झोंक देते है। इससे अच्छा तो वो गली की समिति होती है जो कम से कम सबके बारे में सोचती है। उन लड़के लड़कियों के मन में ये छोटी राजनीति की सोच नहीं होती। आजकल जिसे देखो वो चुनाव लड़ने की बात करता है नोटा दबाने की बात करता है। क्यों?? क्या इस देश में कभी कुछ अच्छा हुआ ही नहीं?? या फिर ये कहो कि तुम्हारे मन का कभी हुआ नहीं। बात मध्यप्रदेश की करें या अन्य राज्यों की। बदलाव तो हुआ है और काफी हद तक हुआ है। बस ये मूर्खता कभी नहीं हुई जो अब हो रही है इस देश के युवाओं को भड़काया जा रहा है कि या तो हमें वोट दो या नोटा दबाओ। नोटा का मतलब मतदान न करने बराबर है। जो युवा इस समय पहली बार वोट देंगे उनका मतदान क्यों व्यर्थ जाए। मेरे विचार में जो संगठन या संस्थाएं सिर्फ सामाजिक कल्याण की भावना रखती है समाज के कल्याण के लिए कार्य करती है उन्हें ही वैद्यता प्रदान की जाए बाकी जो संगठन जातिगत नौटंकी और हल्ला गुल्ला करते है उनकी मान्यता रद्द कर दी जानी चाहिए। क्योंकि इससे सिर्फ भारत के युवा मानसिक रूप से उग्र होते है और अपनी राह से भटक जाते है। राजनितिक रोटियां सेकने के लिए किए गए कार्यों को कभी सामाजिक कल्याण के दायरे में नहीं रखना चाहिए। बाकी मेरा सुझाव है कि चुनाव के नाम पर युवाओं का पैसा और समय न बर्बाद किया जाए। (मेरे विचारों से सहमत या असहमत होना आपकी मानसिकता के स्तर पर निर्भर करता है। मेरे विचार ऐसे इसीलिए है क्योंकि मैं किसी पार्टी या संगठन से जुड़ी नहीं हूँ)
- शिवांगी पुरोहित

Comments

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