जातिगत आंकड़े आये कहाँ से??

आखिर किस संस्था द्वारा ये आंकड़े जारी किये गए है कि भारत की आबादी में हिन्दू धर्म में 85% लोग दलित है और 15% सवर्ण है।जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस सम्बन्ध में कड़े निर्देश जारी किये जा चुके है कि सरकारी जनगणना से कभी जातिगत आंकड़े न निकाले जाए।तो फिर किसी संस्था या व्यक्ति विशेष को जातिगत आंकड़ों की अफवाहे नही फैलानी चाहिये।जब से अप्रैल 2017 में उप्र के एक mla सुनील सिंह यादव "साजन" ने मंच पर खड़े होकर इस बात का जिक्र किया है कि 85% दलितों को केवल 50% आरक्षण क्यों? तभी से लोगो के मन में यह बात बैठ गयी है कि सवर्ण तो केवल 15% है।क्या ऐसी कल्पना भी की जा सकती है।एक और भ्रम यहाँ के मूर्ख लोगो के दिमाग में है कि जब दलितों को 50% आरक्षण मिलता है तो बाकि 50% सामान्य वर्ग का है।ये छोटी छोटी बाते नासमझ लोग मच पर खड़े होकर कह देते है और जनता के मन में भी भ्रम पैदा कर देते है।आखिर इस बात पर आकर कैसे भूल जाते है की सामान्य वर्ग को आरक्षण नही मिलता है।शिक्षा के क्षेत्र का उदहारण लें तो अनारक्षित 50% सीटों पर सभी वर्गो के उच्च अंक लाने वाले विद्यार्थियों का हक होता है जिसमे सामान्य वर्ग के साथ साथ पिछड़ा वर्ग तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के विद्यार्थी शामिल होते है।उसी प्रकार चुनावों को लेकर भी लोगो में भ्रम रहता है। चुनाव में यदि सामान्य वर्ग दावेदार किया गया हो तो उसमे भी सभी जातियां चुनाव में खड़ी हो सकती है क्योंकि सामान्य वर्ग को आरक्षण नही मिलता है यदि दलित दावेदार हो तो केवल दलित ही चुनाव लड़ सकते है क्योंकि ये आरक्षित वर्ग से है।इस प्रकार के भ्रम लोगो के मन से दूर करना आवश्यक है क्योकि कुछ व्यक्तियों या संस्थाओ के द्वारा अपने फायदे के लिए लोगो को जातिगत रूप से भड़काया जा रहा है।यदि सवर्ण दलितों को अपने साथ लेकर चलना चाहे तो उन्ही के वर्ग के लोग उन्हें भड़काते है कि इनके पूर्वजों ने हमारे पूर्वजो का बहुत शोषण किया है।इस प्रकार भेदभाव की दलीले जातिगत अनबन को बढ़ावा दे रही है।वही जातिगत आंकड़ों की अफवाहे भी लोगो में रोष पैदा कर रही है।जिस कारण दलितों के ये बयान आने लगे है कि हमारी 85% नयुक्तियों में मत घुसो अपनी आबादी के हिसाब से 15% आरक्षण ले लो।इन बयानों से यह लगता है कि 85% नियुक्तिया इनके पूर्वज इन्हें वसीयत में दे कर गए है।इसी कारण 50% नियुक्तिया खैरात में बांटी जाती है और 25% दलित प्रतिभाओ की होती है बाकी बची 25% मुश्किल से सवर्णों को मिलती है आखिर यह कहाँ का न्याय है।एक दलित के घर में सभी व्यक्ति आरक्षण का लाभ ले रहे है यदि सरकार का उद्देश्य दलितों का उद्धार है तो आरक्षण एक परिवार के एक सदस्य को ही दिया जाय।आखिर हर सदस्य को आरक्षण से नोकरी मिल रही है चाहे वह योग्य हो या न हो।इस तरह प्रतिभा के साथ खिलवाड़ भी निरंतर जारी है।
शिवांगी पुरोहित

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