ऐसे कर्म करो कि खुद से कोई शर्म न हो।
गणतंत्र दिवस अपने साथ जितनी खुशियां लेकर आता है उतने ही प्रश्न भी लेकर आता है।फर्क सिर्फ इतना है कि प्रश्न केवल प्रश्न बनकर रह जाते है।भारतवासी उनका उत्तर नही दे पाते।68 साल पूरे हो गए है भारत का संविधान लागू हुए।संविधान ने हमे जितने अधिकार दिए है उनका दुरूपयोग तो हम करते ही आये है लेकिन जो मौलिक कर्तव्य हमे निभाने चाहिए हम उन्हें निभाने में अपनी कोई भूमिका अदा नही कर पा रहे है।संविधान के 42वें संशोधन (1976ई०) के द्वारा मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया।पूरे 11 मौलिक कर्तव्य जो इसीलिए बनाये गए थे की भारत की गरिमा को बनाये रखने के लिए देशवासी उन कर्तव्यों का पालन करे।पहला कर्तव्य वर्णित है कि भारत का प्रत्येक नागरिक संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों,संस्थाओं,राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे।इसके विपरीत देश में आये दिन तिरंगे का अपमान होता है,डर्टी पॉलिटिक्स जैसी फ़िल्मी बनती है और ऐक्ट्रेस तिरंगा लपेटकर नग्नता का प्रदर्शन करती है,कश्मीर में आये दिन तिरंगा जलाया जाता है ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।संसद में राष्ट्रगान होने पर कुछ नेतागण पब्लिसिटी के लिए बीच राष्ट्रगान में उठकर चले जाते है लेकिन उन्हें इस बात से फर्क नही पड़ता की वे राष्ट्रगान का अपमान कर रहे है।साथ ही साथ इससे भी शर्मनाक बात यह है कि भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था गणतंत्र दिवस के मौके पर भी मतभेदों में उलझी हुई है।जनता को न्याय दिलाने वाले खुद आपस में लड़ रहे है।दूसरा कर्तव्य है कि स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रिय आंदोलनों को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोय रखे और उनका पालन करें।इसके विपरीत आधुनिकता और कुटिलता कुछ इस तरह बढ़ती जा रही है की लोग अपने देश के महापुरुषो का सम्मान करना तक भूल गए।कुछ लोग भारत के राष्ट्रपिता कहलाने वाले महात्मा गांधी का अपमान करने से बाज नही आते है।आये दिन लोग मंच पर खड़े होकर बापू को अपशब्द कहते है लेकिन क्या वो स्वयं इतने काबिल है की देश के राष्ट्रपिता बन सके।तीसरा कर्तव्य कहता है कि भारत की प्रभुता,एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे लेकिन भारत वासी अलग अलग सम्प्रदायो में बाटें गए है जो हिन्दू मुस्लिम के नाम पर लड़ रहे है।जो बचपन में साथ खेला करते थे, वे आज एक दूसरे के खिलाफ सड़को पर उतार आते है,एक दूसरे के खिलाफ नारे लगते है,पथराव भी करते है और हत्याए भी करते है।साथ ही साथ इस वर्ष गणतंत्र दिवस के मौके पर एक फ़िल्म पद्मावत को लेकर देश भर में जाति विशेष के लोगो ने कोहराम मचा रखा है।जिन्हें देश में एकता लानी चाहिए वे स्वयं को समाज से प्रथक दर्शाते है।चौथा कर्तव्य कहता है कि भारत का प्रत्येक नागरिक देश की रक्षा के लिए अग्रसर रहे इसके विपरीत कश्मीर में देश की रक्षा करने वाले जवानों पर भारत के निवासी ही पथराव करते है।पांचवा कर्तव्य है कि भारत के सभी लोगो में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें लेकिन आरक्षण के चलते जातिगत रोष इतना बढ़ गया है कि समानता कहीं दिखाई ही नही देती है। अगला कर्तव्य है कि प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे।पूरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां भूमि से लेकर अग्नि तक और वृक्षो से लेकर नदियों तक को पूजा जाता है।बात हमारे मध्यप्रदेश की करें तो नर्मदा नदी मध्यभारत प्रान्त की जीवनधारा कहलाती है।माता के रूप में पूजी जाने वाली नर्मदा नदी यहां के लोगों के जीवन में एक मुख्य भूमिका अदा करती है।मध्यप्रदेश में नर्मदा जल घर घर में पहुच रहा है लेकिन लोगो की शिकायत रहती है कि नर्मदा जल सप्लाई के नलो से गन्दा पानी आता है।शिकायत कर्ता शायद इस बात को नही समझते कि वे स्वयं नर्मदा नदी को प्रदूषित करते है।कहने का तात्पर्य यही है कि नर्मदा नदी में गंदे नालों तथा फैक्ट्रियों का पानी निरंतर जा रहा है और लोग स्वयं भी नर्मदा के जल को दूषित कर रहे है साथ ही साथ वृक्षो का कटाव भी जारी है। संविधान का एक कर्तव्य यह भी कहता है कि सर्वाजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे लेकिन आये दिन होने वाले विरोध प्रदर्शन और आंदोलनों से सर्वाजनिक संपत्ति को क्षति पहुचती है।इस प्रकार देखा जाये तो गणतंत्र दिवस के सही मायने तब होंगे जब सभी देशवासी भारत देश के प्रति अपने कर्तव्यों का भली भाँति निर्वाहन करने लगेंगे। "जय हिन्द-जय भारत"
- शिवांगी पुरोहित
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