Saraswati novel

रोजाना दुश्मनी हो जाती है किसी न किसी से.....
स्पष्टवादी होने भी एक अपराध ही है....
यहाँ बहस के शौक़ीन आएंगे सैकड़ो....
लेकिन सच सुनकर भड़क उठते है...
कामयाबी को देख ईर्ष्या धधक जाती है ...
तो कही नीचा दिखाने को आतुर हो उठते है....
कहीं समर्थको को चापलूस कहते है...
कहीं विरोधियों को स्पर्धी.....
तू लड़की है क्या कर लेगी...
बस यही भावना रखते है...
अरे बेवकूफों!! क्यों सीढ़िया बनते हो
मेरी कामयाबी की....
आखिर आलोचक ही होते है...
कामयाबी की निशानी....
(शिवांगी पुरोहित)

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