भारत में बढ़ती भेड़ियों की संख्या

हमारा भारत जो संस्कृति और सभ्यता का परिचायक है उस देश में पापी भेड़ियो की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।इन लोगों के कारण भारत की संस्कृति और गौरव पर एक प्रश्न चिन्ह लग जाता है।छोटी बच्चियो को अपनी हवस का शिकार बनाने वाले ये भेड़िये उनके रिश्तेदार या शिक्षक तक होते है और शर्म की बात तो यह है कि कई महिलाये भी इस अपराध में उनका साथ देती है।स्कूलो में पढ़ने वाली हज़ारो बच्चियां अपने किसी हवसी मास्टर जी की करतूतों का शिकार होती है।रोज़ाना अखबारों में ऐसी घटनाये पढ़ने को मिलती है जो दिल दहला देती है और सोचने को मजबूर कर देती है कि ऐसा कौन सा स्थान है जहां उनके नादान बच्चे सुरक्षित रह सकें।आखिर माँ बाप हर समय तो अपने बच्चों के साथ नही रह सकते।स्कूल जैसे पवित्र स्थान पर माँ बाप अपने बच्चों के सुरक्षित रहने की आशा करते है लेकिन प्रद्युम्न और साँची जैसे हज़ारो बच्चों के साथ हुए अपराधो की ओर देखे तो आज स्कूल भी सुरक्षित नही रहे।बच्चों के साथ हो रहे यौन शोषण और बलात्कार के मामले मुस्लिम मदरसों में भी हो रहे है यहाँ कोई मत धर्म विशेष पर आधारित नही है।मुस्लिम लड़कियां भी उतनी ही असुरक्षित है जितना प्रद्युम्न था।ताजा मामला उप्र की राजधानी लखनऊ के यासीनगंज में स्थित मदरसे का है। पुलिस ने इस मदरसे से करीब 51 लड़कियों को रिहा करवाया है।पुलिस ने मदरसे में छापेमारी कर लड़कियों के यौन शोषण के आरोप में संचालक कारी तैयब जिया को हिरासत में लिया।यहाँ प्रश्न यह नही है कि अपराधी किस धर्म या किस जाति का है।अपितु प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि भारत जैसे देश में इतनी घिनोनी हरकत वो भी छोटे बच्चों के साथ और ये हरकते करने वाले उनके शिक्षक तक है जो उन्हें सही गलत का फर्क बताते है और दुनिया भर का ज्ञान देते है।इन कुछ शिक्षकों के कारण आज विद्यालय जैसे स्थान भी सुरक्षित नही है। भारत में हर साल छोटे बच्चों के साथ यौन शोषण की हज़ारों घटनाये सामने आती है जिनमे लड़कियों के साथ साथ लड़के भी शामिल है।अकसर बलात्कार या यौन शोषण के सम्बन्ध में बात की जाती है तो कुछ पुरुष प्रधान लोग झूठे केसों का हवाला देकर पुरुष के बेचारेपन की बातें करते है।लेकिन ये एक कटु सत्य है कि बॉय चाइल्ड के साथ भी यौन अपराध होते है।लोगो की मानसिकता कुछ ऐसी हो गयी है की यदि कोई नारी पर हो रहे अत्याचार के बारें में तर्क दें तो महिला प्रधान कहला जाता है और यदि पुरुषों पर लगे झूठे केसों की बात करें तो महिला विरोधी बन जाता है। लेकिन यदि बात छोटे बच्चों के साथ हुए यौन शोषण या बलात्कार की करें तो यह सभी को स्वीकार करना पड़ेगा की इन मामलों में न तो झूठ होता है न ही महिला पुरुष प्रधानता।ऐसे गंभीर मामले हमारे भारत के  ऊपर कलंक है और इन अपराधो को रोकने के लिए हमे खुद सजग रहना होगा ।माता पिता अपने बच्चों की खैरियत के लिए सतर्क रहे तथा बच्चों को बाहर अकेले पढ़ने न भेजें।आज हर शहर में अच्छे स्कूल कॉलेज खुले हुए है फिर भी लोग अपने बच्चों को बड़े शहरों में पढ़ने भेजते है जो अपनी आधी ज़िन्दगी होस्टलों में बिताते है और ऐसे बच्चे जो अपने परिवार से दूर अकेले रहते है उनके साथ सबसे ज्यादा अपराध होते है।
- शिवांगी पुरोहित

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